सोने से पहले स्मार्टफोन देखने वाले सावधान! 50 मिनट की नींद छीन लेता है मोबाइल- स्टडी

स्टडी फरवरी 2023 से जनवरी 2025 के बीच की गई है।

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Written by हेमन्त कुमार, अपडेटेड: 29 मार्च 2025 14:06 IST
ख़ास बातें
  • स्टडी के लिए 1,22,000 भागीदारों को शामिल किया गया।
  • स्टडी फरवरी 2023 से जनवरी 2025 के बीच की गई है।
  • सोने से पहले फोन देखने वालों में नींद की खराब गुणवत्ता के चांस प्रतिशत।

रात को सोने से पहले फोन देखने की आपकी आदत आपकी सेहत पर काफी बुरा प्रभाव डाल सकती है।

रात को सोने से पहले फोन देखने की आपकी आदत आपकी सेहत पर काफी बुरा प्रभाव डाल सकती है। एक नई स्टडी कहती है कि जो लोग, खासकर वयस्क, अगर सोने से पहले फोन स्क्रीन पर स्क्रॉल करते हैं तो उनकी नींद एक हफ्ते में 1 घंटे तक कम हो जाती है, और इसी के साथ उनकी दिमागी सेहत पर भी इसका बुरा प्रभाव पड़ता है। यानी रात को सोने से पहले फोन देखना आपकी नींद के साथ-साथ आपके दिमाग को भी नुकसान पहुंचाता है। आइए जानते हैं स्टडी में और क्या तथ्य निकल कर सामने आए हैं। 

स्मार्टफोन या मोबाइल हमारी जिंदगी में ऐसे शामिल हो चुके हैं कि इनके बिना अब रहना असंभव सा लगता है। हरेक व्यक्ति दिन में मोबाइल या स्मार्टफोन पर घंटों बिताता है। लेकिन रात में यह काफी नुकसान देने वाला हो सकता है। JAMA Network में एक नई स्टडी प्रकाशित हुई है। अमेरिकन कैंसर रिसर्च सोसायटी से शोधकर्ताओं ने पाया है कि रोजाना सोने से पहले स्मार्टफोन स्क्रीन पर स्क्रॉल करना हमारे शरीर के सर्केडियन रिदम (circadian rhythm) को बिगाड़ देता है। 

सर्केडियन रिदम उस लय को कहा जाता है जो हमारा शरीर 24 घंटे में पूरा करता है। यानी हर रोज रात को सही समय पर नींद आना, और सुबह उसी के अनुरूप नींद खुल जाना। इसी तरह शरीर एक साइकिल में चलता है। लेकिन स्मार्टफोन का इस्तेमाल इस साइकल को डिस्टर्ब कर देता है। स्टडी कहती है कि सर्केडियन रिदम बिगड़ने से हमारी नींद एक हफ्ते में 50 मिनट तक कम हो जाती है। 

इस स्टडी के लिए 1,22,000 भागीदारों को शामिल किया गया। स्टडी फरवरी 2023 से जनवरी 2025 के बीच की गई है। शामिल किए गए लोगों में 41% ऐसे थे जो रोज सोने से पहले स्मार्टफोन या अन्य किसी स्क्रीन का इस्तेमाल करते थे। जबकि 17.4% ऐसे थे जो किसी तरह की स्क्रीन का इस्तेमाल नहीं करते थे। पाया गया कि जो लोग बेड पर जाकर डेली स्क्रीन देखते हैं उनमें नींद की खराब गुणवत्ता के चांस 33% ज्यादा थे, बजाए उन लोगों के जो सोने से पहले स्क्रीन नहीं देखते हैं। 

रोजाना स्क्रीन इस्तेमाल लेट सोने से सीधा जुड़ा पाया गया जो कि हर हफ्ते नींद को 50 मिनट तक कम कर देता है। हमारे शरीर में रात के समय सोने के लिए एक हॉर्मॉन निकलता है जिसे मिलेटॉनिन कहते हैं। यह हॉर्मॉन सोने-जागने की साइकल को नियंत्रित करता है। लेकिन यह हॉर्मॉन डिजिटल स्क्रीन की रोशनी आंखों पर पड़ने से डिस्टर्ब हो जाता है। इससे व्यक्ति की प्राकृतिक नींद साइकल बिगड़ जाती है। नींद की गुणवत्ता खराब होने से व्यक्ति के शरीर में कई बुरे प्रभाव पड़ते हैं। यह ऑवरऑल हेल्थ को खराब करता है, साथ ही दिमाग की कार्यप्रणाली के लिए भी हानिकारक है।  
 
 

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हेमन्त कुमार Gadgets 360 में सीनियर ...और भी

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