धरती के वातावरण में तैरने वाले बादल पानी के भाप बनने से बनते हैं। यहां के बादलों का बनना दूसरे ग्रहों से काफी अलग है। वैज्ञानिकों ने इतना तो पता लगा लिया था कि कुछ ग्रहों के बादल सिलिकेट के बने हुए हैं लेकिन वो किन परिस्थितियों में बने हैं, इसका पता अभी तक नहीं लग पाया था। अब, एक नई स्टडी में पता चला है कि धूल से बने बादलों में भी एक समान कारक काम करता है। वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में शोधकर्ताओं ने नासा के रिटायर हो चुके टेलीस्कोप Spitzer Space Telescope द्वारा देखे गए ब्राउन ड्वार्फ्स (Brown dwarfs) को ऑब्जर्व करके एक
स्टडी तैयार की है। ये ऐसे खगोलीय पिंड होते हैं जो ग्रह से तो बड़े होते हैं लेकिन तारे से छोटे होते हैं।
वेस्टर्न यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर और
स्टडी के को-ऑथर स्टेनिमिर मेचिव ने कहा कि ब्राउन ड्वार्फ्स और उन सिलिकेट बादलों वाले ग्रहों के वातावरण को समझने के माध्यम से हम पृथ्वी के आकार जितने बाकी ग्रहों के वातावरण को भी समझ सकते हैं। बादल बनने की प्रक्रिया सब जगह एक जैसी रहती है, जिसमें मुख्य घटक गर्म होता है और भाप बनता है। एक बार जब घटक- चाहे वह पानी हो, नमक हो, सल्फर हो या अमोनिया हो, वातावरण में कैद हो जाता है और ठंडा होने लगता है तो बादल बनते हैं।
यह सिद्धांत सिलिका के बादल बनने में भी इस्तेमाल होता है, चूंकि चट्टान को भाप बनने के लिए बहुत ज्यादा तापमान चाहिए होता है, इसलिए ऐसे बादल केवल ब्राउन ड्वार्फ्स जैसे खगोलीय पिंडों पर ही पाए जा सकते हैं, जो बहुत ज्यादा गर्म होते हैं। शोधकर्ताओं ने ब्राउन ड्वार्फ्स को अपनी स्टडी में शामिल किया है, क्योंकि इनमें से बहुत में गैसीय वातावरण पाया जाता है जैसा कि बृहस्पति का वातावरण है।
स्पिजर टेलीस्कोप ने ब्राउन ड्वार्फ्स के वातावरण में सिलिका के बादलों को देखा है। हालांकि, इसका प्रमाण बहुत अधिक ठोस नहीं है। नई स्टडी में शोधकर्ताओं ने ऐसी ही 100 के लगभग खोजों को एक साथ रखा और उन्हें ब्राउन ड्वार्फ्स के अलग अलग तापमान के हिसाब से ग्रुप में बांट दिया। इसकी मदद से वह उस लक्षण और तापमान तक पहुंच पाए जिनसे सिलिका के बादल बनते हैं।
स्टडी के लीड ऑथर जिनेरो सुआरेज ने कहा कि सिलिका के बादलों वाले ब्राउन ड्वार्फ्स को खोजने के लिए उन्होंने Spitzer के डेटा को खंगाला, और उन्हें ये बिल्कुल नहीं पता था कि उन्हें इसमें क्या मिलने वाला है।