विज्ञान यानी साइंस को एक सब्जेक्ट के तौर पर पढ़ते हुए हमने हमेशा यही जाना है कि पौधों को अपना भोजन बनाने और विकास करने के लिए सूर्य की रोशनी की जरूरत होती है। इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) कहते हैं। लेकिन एक नई मेथड से बिना सूर्य की रोशनी के यानी पूरी तरह घुप अंधेरे में भी पौधों का विकास मुमकिन हो सकता है। वैज्ञानिकों ने बिना धूप के पौधे उगाने के लिए कृत्रिम प्रकाश संश्लेषण की ऐसी विधि बनाई है, जिससे पृथ्वी पर पौधों को उगाने के नए तरीके सामने आ सकते हैं। मुमकिन है कि एक दिन मंगल ग्रह पर भी पौधे उगाए जा सकेंगे।
दरअसल, प्राकृतिक रूप से पौधे स्वपोषी होते हैं। यानी वो अपना भोजन बनाने के लिए कार्बन डाई-आक्साइड, पानी और मिनिरल्स इस्तेमाल करते हैं। यह प्रक्रिया प्रकाश संश्लेषण द्वारा होती है, जिसमें सूर्य की रोशनी की जरूरत पड़ती है।
लेकिन अमेरिका में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स समेत अन्य का कहना है कि यह प्राकृतिक प्रक्रिया प्रभावहीन है, क्योंकि सूर्य की रोशनी में पाई जाने वाली ऊर्जा का सिर्फ 1 फीसदी पौधों तक पहुंचता है। वर्तमान में वैज्ञानिक लोबिया, टमाटर, तंबाकू, चावल, कैनोला और हरी मटर जैसी फसलों के उत्पादन के तरीकों का आकलन कर रहे हैं, जिनकी खेती अंधेरे में करने पर वह एसीटेट से कार्बन का इस्तेमाल करते हैं। नेचर फूड जर्नल में पिछले हफ्ते पब्लिश एक नई स्टडी से पता चला है कि साइंटिस्टों ने आर्टिफिशियल प्रकाश संश्लेषण का इस्तेमाल करके पौधों के विकास का तरीका खोजा है।
इंडिपेंडेंट की
रिपोर्ट के अनुसार, कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी में प्लांट ट्रांसफॉर्मेशन रिसर्च सेंटर के डायरेक्टर मार्था ओरोज्को-कार्डेनस ने कहा कि कल्पना कीजिए अंधेरे में और मंगल ग्रह पर टमाटर के पौधे उगाने वाले विशाल जहाजों के लिए यह सब कितना आसान होगा।
इस रिसर्च के तहत कार्बन डाइऑक्साइड, बिजली और पानी को एसीटेट में बदलने के लिए दो स्टेप वाली केमिकल प्रोसेस इस्तेमाल हुई, जिसमें सिरका प्रमुख कॉम्पोनेंट था। रिसर्चर्स ने पाया कि भोजन पैदा करने वाले जीवों ने अंधेरे में एसीटेट का सेवन किया।
इस केमिकल रिएक्शन को पावर देने के लिए सौर पैनलों के जरिए बिजली पैदा की गई। वैज्ञानिकों ने कहा कि यह सिस्टम कुछ पौधों के विकास को और बेहतर बना सकता है। वह अपना भोजन तैयार करने में 18 गुना तक बेहतर हो सकते हैं।