पृथ्वी के बाहर जीवन की खोज में जुटे वैज्ञानिक वर्षों से एक्सोप्लैनेट (Exoplanet) पर रिसर्च कर रहे हैं। ऐसे ग्रह जो सूर्य के अलावा किसी और तारे की परिक्रमा करते हैं, एक्सोप्लैनेट कहलाते हैं। जब से जेम्स वेब स्पेस टेलिस्कोप (James Webb Space Telescope) लॉन्च हुआ है, वैज्ञानिकों की उम्मीद बढ़ गई है। अंतरिक्ष में तैनात सबसे बड़ी दूरबीन के जरिए वैज्ञानिक ऐसे सुराग तलाशना चाहते हैं, जिससे वह एलियंस को ढूंढने के करीब पहुंच जाएं। जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की मदद से वैज्ञानिकों ने हमारे सौर मंडल से 700 प्रकाश-वर्ष दूर स्थित एक एक्सोप्लैनेट से जुड़ी असाधारण खोज है। WASP-39b नाम के एक्सोप्लैनेट (Exoplanet) की स्टडी से पता चलता है कि वहां बादल छाए हुए हैं। इस ग्रह के वातावरण में एक केमिकल रिएक्शन है और ग्रह की उत्पत्ति के बारे में सुराग भी हैं।
नासा ने बताया है कि वेब के लेटेस्ट डेटा में इस एक्सोप्लैनेट पर परमाणुओं, यौगिकों के अलावा एक्टिव केमिस्ट्री और बादलों के होने का पता चलता है।
WASP-39b जिस तारे की परिक्रमा करता है, वह Virgo तारामंडल में स्थित है। अगस्त महीने में जेम्स वेब टेलीस्कोप को इस एक्सोप्लैनेट के वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड के सबूत मिले थे।
नासा का कहना है कि उसने कई इंस्ट्रूमेंट्स की मदद से इस एक्सोप्लैनेट को ऑब्जर्व किया। रिसर्चर्स ने एक्सोप्लैनेट के वायुमंडल से गुजरने वाली तारों की रोशनी को देखने के लिए ट्रांसमिशन स्पेक्ट्रोस्कोपी का इस्तेमाल किया। ग्रह के वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में और भी कई गैसें हैं। करीब 300 खगोलविदों की टीम इनका पता लगाने में जुटी रही। उन्हें सल्फर डाइऑक्साइड (SO2) का भी पता चला। बताया जाता है कि वहां SO2 का निर्माण तब होता है, जब एक्सोप्लैनेट के तारे की रोशनी ग्रह पर पड़ती है। रिसर्चर्स को पहली बार किसी एक्सोप्लैनेट के वातावरण में SO2 मिली, जो बड़ी खोज है।
रिसर्च पेपर के लेखक और ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शांग-मिन त्साई ने कहा है कि पहली बार किसी एक्सोप्लैनेट पर तारे की रोशनी के कारण शुरू हुई रासायनिक प्रतिक्रियाओं के ठोस सबूत देखे गए हैं। वैज्ञानिकों का कहना है कि एक्सोप्लैनेट के वायुमंडल को समझने में यह स्टडी काम आएगी। हालांकि यहां पृथ्वी की तरह जीवन का पनपना नामुमकिन होगा।
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