पुलिस के लिए डिजिटल टूल्स भी तैयार हो रहे हैं। आने वाले समय में पुलिसकर्मी लैपटॉप, टैबलेट और वाई-फाई से लैस होंगे। FIR ऑनलाइन लिखी जाएगी और सर्टिफिकेशन के लिए वीडियो रिकॉर्डिंग होगी।
बिहार पुलिस का यह मॉडल तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों से प्रेरित है
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डिजिटल इंडिया के दौर में अब पुलिस भी फाइलों के ढेर से बाहर निकल रही है। बिहार पुलिस जल्द ही हाई-टेक अपग्रेडेशन की ओर कदम बढ़ाने वाली है, जहां थानों से लेकर फील्ड तक हर काम मोबाइल, लैपटॉप और ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर शिफ्ट होगा। अब न तो मोटी-मोटी फाइलों का अंबार दिखेगा और न ही दर्जनों रजिस्टरों में डेटा तलाशने की झंझट। केस डॉक्यूमेंट्स और सबूत पेपरलेस फॉर्मेट में डिजिटली सेव होंगे, जिससे केस हैंडलिंग तेज और पारदर्शी हो सकेगी। खास बात ये है कि पुलिस मौके पर ही टैबलेट और कैमरे से रिपोर्टिंग कर पाएगी और सारी जानकारी रियल-टाइम सर्वर पर सेव होगी। यानी आने वाले दिनों में बिहार पुलिस का चेहरा पूरी तरह डिजिटल और टेक-ड्रिवन दिखेगा।
एडीजी (आधुनिकीकरण) सुधांशु कुमार के मुताबिक, पुलिस के सभी रजिस्टर, मैनुअल और डॉक्यूमेंट्स अब कागज पर नहीं बल्कि सॉफ्ट कॉपी में तैयार होंगे। खास बात यह है कि केस से जुड़े डिजिटल साक्ष्य सुरक्षित रखे जा सकेंगे और इनके साथ छेड़छाड़ की संभावना भी खत्म हो जाएगी। डिजिटल फाइलिंग सिस्टम से न केवल डॉक्यूमेंट्स की सुरक्षा बढ़ेगी बल्कि केस का निपटारा भी तेजी से होने की उम्मीद है।
पुलिस के लिए डिजिटल टूल्स भी तैयार हो रहे हैं। आने वाले समय में पुलिसकर्मी लैपटॉप, टैबलेट और वाई-फाई से लैस होंगे। FIR ऑनलाइन लिखी जाएगी और सर्टिफिकेशन के लिए वीडियो रिकॉर्डिंग होगी। यानि थाने में बैठकर फाइल पलटने की बजाय, पुलिस मौके पर ही सबूत और रिपोर्ट ऑनलाइन सर्वर पर अपलोड कर सकेगी। इससे हर लोकेशन पर पुलिस हेडक्वार्टर जैसा सिस्टम मौजूद रहेगा।
बिहार पुलिस का यह मॉडल तेलंगाना और कर्नाटक जैसे राज्यों से प्रेरित है, जहां पहले से ही पुलिस सिस्टम डिजिटल हो चुका है। हालांकि बिहार इसे अपनी जरूरतों और नई तकनीक के हिसाब से अपग्रेड कर रहा है। इसका मतलब है कि बिहार का डिजिटल पुलिस सिस्टम सिर्फ कॉपी-पेस्ट नहीं होगा बल्कि और एडवांस्ड फीचर्स के साथ रोलआउट किया जाएगा।
डिजिटल पुलिसिंग का असर सबसे ज्यादा ट्रैफिक और ऑन-ग्राउंड मॉनिटरिंग पर दिख सकता है। नियम तोड़ने वालों की हर एक्टिविटी कैमरे और डिजिटल रिकॉर्डिंग में कैप्चर होगी। इस तरह का सिस्टम चालान से लेकर बड़े आपराधिक मामलों तक पारदर्शिता और तेजी लाएगा। पुलिस विभाग का मानना है कि डिजिटल ट्रांजिशन के बाद एफिशिएंसी और एकाउंटेबिलिटी दोनों बढ़ेंगी।
डिजिटल पुलिसिंग के लिए ऐप डेवलपमेंट, सर्वर सेटअप और ट्रेनिंग का काम शुरू हो चुका है। एक स्पेशल कमेटी तेलंगाना और कर्नाटक के मॉडल को स्टडी करके लौट चुकी है और अब इम्प्लिमेंटेशन स्टेज पर काम तेज किया जा रहा है। यदि आने वाले दिनों में आपको पुलिस के हाथ में iPad और बॉडी पर कैमरा लगा दिखाई दे, तो चौंकिएगा नहीं।
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