क्रिप्टोकरेंसी में रुचि रखने वाले बिटकॉइन (Bitcoin) के बारे में जरूर जानते ही होंगे। यह डिजिटल करेंसी है जिसकी माइनिंग कंप्यूटरों के द्वारा की जाती है। अब बिटकॉइन माइनिंग (Bitcoin Mining) को लेकर एक चौंकाने वाली स्टडी सामने आई है। जिसमें कहा गया है कि एक बिटकॉइन को बनाने में इतना पानी खर्च हो जाता है जिससे एक स्वीमिंग पूल को भरा जा सकता है। ध्यान देने वाली बात ये भी है यह साफ पानी होता है। यानी एक बिटकॉइन की कीमत एक स्वीमिंग पूल जितनी मात्रा के साफ को खर्च करके चुकानी पड़ती है। आइए जानते हैं डिटेल में, आखिर यह कैसे होता है।
Bitcoin क्रिप्टोकरेंसी दुनिया की सबसे बड़ी और पुरानी क्रिप्टोकरेंसी मानी जाती है। इसकी माइनिंग को लेकर एक चौंकाने बात नई स्टडी में कही गई है। New Scientist की
रिपोर्ट के अनुसार, नीदरलैंड में वीयू एम्स्ट्रडैम स्कूल ऑफ बिजनेस एंड इकोनोमिक्स के एलेक्स डी वराइज ने एक स्टडी तैयार की है। उन्होंने इसमें बताया है कि 2021 में बिटकॉइन की माइनिंग में दुनियाभर में 1.6 ट्रिलियन लीटर पानी इस्तेमाल किया गया। यानी कि 1.6 हजार अरब लीटर पानी इसमें इस्तेमाल हुआ।
16 हजार लीटर पानी एक सिंगल बिटकॉइन को बनाने में इस्तेमाल होता है। इसमें साफ पानी इस्तेमाल किया जाता है। इसका मतलब है कि एक बिटकॉइन बनाने में जितना पानी इस्तेमाल होता है, उससे एक छोटे स्वीमिंग पूल को भरा जा सकता है! इस साल के लिए आंकड़े और भी चौंकाने वाले हैं। एक्सपर्ट कह रहे हैं कि इस साल बिटकॉइन माइनिंग में 2.3 ट्रिलियन लीटर पानी इस्तेमाल होने की संभावना है। Cell Reports Sustainability नामक जर्नल में
प्रकाशित स्टडी कहती है कि अगर ऐसे ही बिटकॉइन माइनिंग में पीने लायक पानी इस्तेमाल होता रहा तो आने वाले समय में यह साफ पानी का संकट पैदा कर सकता है। खासकर ऐसे देशों में जहां लोग पहले से ही पानी की कमी से जूझ रहे हैं। इनमें अमेरिका भी शामिल है।
बिटकॉइन माइनिंग में इंटरनेट के माध्यम से कंप्यूटर पर गणित संबंधी बड़ी इक्वेशन सॉल्व की जाती हैं जिसमें बहुत ज्यादा पावर इस्तेमाल होती है। ऐसे में कंप्यूटर गर्म होते रहते हैं जिनको ठंडा रखने के लिए पानी का इस्तेमाल करना पड़ता है। इसी के साथ कंप्यूटरों को पावर देने के लिए जो बिजली के प्लांट लगे होते हैं, उनमें भी कोयला-गैस के इस्तेमाल के कारण तापमान बहुत बढ़ जाता है। ऐसे में इन प्लांट्स में भी भारी मात्रा में पानी का इस्तेमाल होता है ताकि तापमान को कंट्रोल में रखा जा सके।
स्टडी के ऑथर Alex ने लिखा है कि कंप्यूटर डिवाइसेज पूरा दिन नम्बर जेनरेट करते हैं और बाद में उन्हें डिलीट कर दिया जाता है, यानी अंत में ये किसी काम में नहीं आते हैं। एलेक्स ने लिखा है कि 1 बिटकॉइन बनाने का मतलब है कि एक स्वीमिंग पूल को भांप बनाकर उड़ा दिया जाता है। बिटकॉइन माइनिंग के पर्यावरण पर प्रभाव को लेकर पहले भी मुद्दे उठाए गए हैं लेकिन पानी को लेकर यह अपनी तरह की पहली स्टडी की गई है। लेखक का कहना है कि बिटकॉइन की बढ़ती कीमत के साथ ही इसमें पानी का इस्तेमाल भी बढ़ रहा है। यह 2021 की तुलना में 40% अधिक हो चुका है। उन्होंने लिखा है कि बिटकॉइन माइनिंग में भले ही टेक्नोलॉजी में बदलाव किए जा रहे हैं लेकिन इसके प्रभाव को एक रात में खत्म नहीं किया जा सकता है। पर्यावरण पर हो रहे इसके प्रभाव को रोकने के लिए बड़े उपाय करने की जरूरत है।