लंदन में नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम में रखे गए एक जीवाश्म पर की गई नई स्टडी से पता चला है कि इस धरती पर छिपकलियों की उत्पत्ति काफी पहले हो गई थी। मॉडर्न लिजार्ड (आधुनिक छिपकलियों) की उत्पत्ति का जो समय अबतक अनुमान लगाया जाता है, उससे भी 3.5 करोड़ साल पहले छिपकलियां इस धरती पर आ गई थीं। साइंस एडवांस में पब्लिश हुई स्टडी बताती है कि आधुनिक छिपकलियों की उत्पत्ति का काल मध्य जुरासिक (17.4 से 16.3 करोड़ वर्ष पूर्व) पूर्व माना जाता था, लेकिन अब संकेत मिला है कि आधुनिक छिपकलियां लेट ट्राइसिक (23.7 से 20.1 करोड़ वर्ष पूर्व) भी मौजूद थीं।
रिसर्चर्स ने जिस जीवाश्म को स्टडी किया, वह साल 1950 के दशक से म्यूजियम में रखा हुआ है। तब प्रजातियों की पहचान की सटीक तकनीक मौजूद नहीं थी। यह जीवाश्म इंग्लैंड में एक खदान से मिला था, जिसके साथ कई और सरीसृपों के जीवाश्म भी थे। यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिस्टल के प्रमुख रिसर्चर डॉ डेविड व्हाइटसाइड के हवाले से कहा गया है कि रिसर्चर्स ने जीवाश्म की जांच की, वह आश्वस्त हो गए कि म्यूजियम में रखा जीवाश्म तुआतारा ग्रुप की छिपकली के मुकाबले आधुनिक छिपकलियों के ज्यादा करीब है।
रिसर्चर्स ने एक्स-रे स्कैन की मदद से 3 डाइमेंशन में जीवाश्म का पुनर्निर्माण किया। उन्होंने पाया कि इसके जबड़े में तेज धार वाले दांत थे। उन्होंने इसका नाम क्रिप्टोवरानोइड्स माइक्रोलेनियस (Cryptovaranoides microlanius) रखा है। इसका मतलब होता है 'छोटा कसाई'।
खबर पर आगे बढ़े, उससे पहले तुआतारा की बात कर लेते हैं। न्यूजीलैंड में पाई जाने वाली तुआतारा धरती पर मौजूद अकेली राइनोसेफेलियन है। तुआतारा एक मोटे इगुआना जैसी दिखती है। तुआतारा को वैज्ञानिक जीवित जीवाश्म भी कहते हैं, क्योंकि यह करीब 19 करोड़ साल से पृथ्वी पर अपना वजूद बचाए हुए है। वहीं, क्रिप्टोवरानोइड्स माइक्रोलेनियस की विशेषताएं बताती हैं कि यह एक स्क्वामेट (आधुनिक छिपकलियों और सांपों का एक समूह) है। यह तुआतारा के राइनोसेफेलियन ग्रुप से एकदम अलग है।
हाल ही में रिसर्चर्स ने छिपकली जैसे सरीसृप (reptile) की एक नई विलुप्त प्रजाति के अच्छी तरह से संरक्षित जीवाश्म की खोज की थी। वैज्ञानिकों की एक टीम ने नई प्रजाति Opisthiaamimus gregori (ओपिसथियामिमस ग्रेगोरी) के बारे में बताया था कि यह लगभग 15 करोड़ साल पहले नॉर्थ अमेरिका में स्टेगोसॉरस (Stegosaurus) और एलोसॉरस (Allosaurus) जैसे डायनासोर के साथ रहती थी। इस विलुप्त हो चुकी प्रजाति का साइज नाक से पूंछ तक लगभग 16 सेंटीमीटर (लगभग 6 इंच) रहा होगा, जो एक इंसान की हथेली में फिट होने जितना है। माना जा रहा है कि यह कीड़ों और अन्य अकशेरूकीय (invertebrates) को खाकर जीवित रहती होगी।