बीते कुछ साल से वैज्ञानिकों ने अपना फोकस एक्सोप्लैनेट की ओर बढ़ा दिया है। ऐसे ग्रह जो सूर्य के अलावा अन्य तारों की परिक्रमा करते हैं, एक्सोप्लैनेट कहलाते हैं। वैज्ञानिक इस उम्मीद में एक्सोप्लैनेट को खोज रहे हैं कि उन्हें वहां जीवन के संकेत मिल जाएंगे। हो सकता है कोई एक्सोप्लैनेट एलियंस का नुमाइंदगी भी करता हो। ज्यादातर एक्सोप्लैनेट को ट्रांजिट मेथड द्वारा खोजा गया है। इसमें एक ऑप्टिकल टेलीस्कोप समय के साथ किसी तारे की चमक को मापता है। अगर तारे की चमक बहुत कम है, तो यह संकेत हो सकता है कि कोई ग्रह उसके सामने से गुजरा है। ट्रांजिट मेथड एक पावरफुल टूल है, लेकिन इसकी अपनी कुछ सीमाएं हैं। इसके लिए ऑप्टिकल टेलीस्कोप चाहिए और तारे के पास से ग्रह को गुजरना चाहिए।
अब एक नई मेथड भी खगोलविदों को रेडियो टेलीस्कोप का इस्तेमाल करके एक्सोप्लैनेट का पता लगाने में मदद कर सकती है।
sciencealert की
रिपोर्ट के अनुसार, रेडियो तरंग दैर्ध्य (wavelengths) पर एक्सोप्लैनेट को ऑब्जर्व करना आसान नहीं है। ज्यादातर ग्रह बहुत ज्यादा रेडियो लाइट उत्सर्जित नहीं करते हैं और तारे ऐसा करते हैं। हालांकि तारों से निकलने वाले फ्लेयर्स के कारण रेडियो लाइट में भी अंतर हो सकता है। लेकिन बृहस्पति जैसे बड़े गैस ग्रह रेडियो ब्राइट हो सकते हैं। इसकी वजह इनका मजबूत चुंबकीय क्षेत्र है। बृहस्पति ग्रह की रेडियो लाइट इतनी चमकदार है कि आप इसे घर में मौजूद रेडियो टेलीस्कोप से पहचान सकते हैं।
एस्ट्रोनॉमर्स ने कई और ग्रहों से रेडियो सिग्नल्स का पता लगाया है।
स्टडी के दौरान टीम ने यह समझने की कोशिश की कि इस तरह के सिग्नल कैसे हो सकते हैं। उन्होंने अपने मॉडल को मैग्नेटोहाइड्रोडायनामिक्स (MHD) पर आधारित किया। यह बताता है कि चुंबकीय क्षेत्र और आयनित गैसें कैसे आपस में इंटरेक्ट करती हैं। अपनी स्टडी को वैज्ञानिकों ने HD 189733 के रूप में पहचाने के गए ग्रह सिस्टम पर अप्लाई किया। उन्होंने सिम्युलेट किया कि कैसे एक तारे की हवा ने ग्रह के चुंबकीय क्षेत्र इंटरेक्ट किया।
वैज्ञानिकों को कई दिलचस्प चीजें पता चलीं। उन्हें पता चला कि रेडियो ऑब्जर्वेशन अपने तारे के सामने से गुजरने वाले किसी ग्रह के ट्रांजिशन का पता लगा सकते हैं। हालांकि ऐसे सिग्नल काफी फीके होंगे और उन्हें पकड़ने के लिए नई जेनरेशन वाले रेडियो टेलिस्कोप की जरूरत होगी। लेकिन अगर हम उनका पता लगाते हैं, तो ग्रहों के रेडियो सिग्नल हमें सिस्टम में कम से कम एक ग्रह का सटीक ऑर्बिटल माप देंगे। इससे एक्सोप्लैनेट की संरचना और इंटीरियर को समझने में मदद मिलेगी।
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