ट्रैफिक सिग्नल की जब बात आती है तो ज़हन में सबसे पहले लाल, हरी और पीली लाइट का चित्र उभर आता है। शुरुआत से ही ट्रैफिक सिग्नल को इन तीन लाइटों से जाना जाता रहा है। लेकिन अब इसमें बदलाव का समय आ गया लगता है। नॉर्थ कैरोलीना स्टेट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अब इसमें सफेद लाइट को इस्तेमाल करने का विचार प्रस्तुत किया है। इसके पीछे तर्क देते हुए इंजीनियर्स कहते हैं कि इससे ट्रैफिक फ्लो को बेहतर तरीके से कंट्रोल किया जा सकेगा। आइए, आपको बताते हैं कि इंजीनियर्स के इस तर्क का आधार क्या है।
ट्रैफिक सिग्नल को लेकर नॉर्थ कैरोलीना स्टेट यूनिवर्सिटी ने एक रिसर्च जारी की है। यह रिसर्च वहां के ट्रांसपोर्ट इंजीनियर्स ने कंडक्ट की है जिसमें ट्रैफिक सिग्नल पर लाल बत्ती,
पीली बत्ती और हरी बत्ती के अलावा व्हाइट लाइट यानि कि सफेद बत्ती को शामिल करने की बात कही गई है। इंजीनियर्स का कहना है कि इससे ऑटोनोमस व्हीकलों (AV), ऐसे व्हीकल जो सेल्फ कंट्रोल्ड होते हैं, के जरिए ट्रैफिक को कंट्रोल करने में मदद मिलेगी। रिसर्च को यूनिवर्सिटी की अधिकारिक वेबसाइट पर
प्रकाशित किया गया है। इस रिसर्च में कम्प्यूटर की मदद से ऐसे हालातों बनाकर शोध किया गया है जिससे कि सेल्फ ड्राइविंग व्हीकल अपने इंटेलिजेंस की मदद से ट्रेवल टाइम को न्यूनतम स्तर तक ले जा सकते हैं और ईंधन का इस्तेमाल भी बहुत हद तक घटा सकते हैं।
शोधकर्ताओं ने इसे व्हाइट फेज इंटरसेक्शन का नाम दिया है जहां सेल्फ ड्राइविंग व्हीकल अपनी कम्प्यूटिंग पावर का इस्तेमाल नेविगेशन और इंटरसेक्शन पर ट्रैफिक फ्लो को मापने में कर सकेंगे। इसके लिए वह एक दूसरे से कनेक्शन साध सकेंगे और किसी इंटरसेक्शन या
ट्रैफिक सिग्नल पर ट्रैफिक की स्थिति का जायजा लेकर ट्रेवल टाइम को कम से कम कर सकेंगे। इससे व्हीकल में इस्तेमाल होने वाले ईंधन की भी बचत होगी। यह काम ट्रैफिक सिग्नल पर लगे मेन कम्प्यूटर के जरिए हो सकेगा, जिससे ऑटोनोमस व्हीकल भी कनेक्ट कर पाएंगे।
यानि कि ट्रैफिक सिग्नल पर लगा मेन कम्प्यूटर अपने डेटा के आधार पर ऑटोनोमस व्हीकल के कम्प्यूटर को जानकारी भेजेगा और उसके इंटरसेक्शन पर पहुंचने के समय व्हाइट लाइट को ऑन कर देगा। जब ऑटोनोमस व्हीकल इस व्हाइट लाइट को देखेगा तो उसे पता लग जाएगा कि उस इंटरसेक्शन पर और भी AV पहले से मौजूद हैं और उसके अनुसार ही प्रत्येक व्हीकल अपनी दिशा को तय करेगा। यहां पर एक फायदा यह भी होगा कि ऐसे व्हीकल, जिनको कोई इंसान चला रहा होगा, उन्हें केवल उस ऑटोनोमस व्हीकल को फॉलो करना होगा और वह व्हीकल उन्हें उस रूट पर सबसे बेहतर ट्रैफिक फ्लो वाले रास्ते पर खुद ही ले जाएगा।
कुल मिलाकर यह रिसर्च बताती है कि इसमें सेल्फ ड्राइविंग व्हीकलों का बहुत बड़ा योगदान होगा। ये व्हीकल किसी एरिया के ट्रैफिक, लोकेशन, हालातों आदि की जानकारी इकट्ठा करेंगे और उसी हिसाब से ट्रैफिक के लिए बेस्ट फ्लो का निर्धारण करेंगे। और आदमियों को केवल इन व्हीकल्स को केवल फॉलो करना होगा, क्योंकि ये व्हीकल अपने इंटेलिजेंस की मदद से बेस्ट रूट पर पहले से ही चल रहे होंगे। और ऐसी स्थिति में, जब किसी इंटरसेक्शन पर बहुत सारे AVs मौजूद नहीं होंगे, तो ट्रैफिक सिग्नल अपने आप ही पारंपरिक तीन लाइटों वाले फॉर्मेट में काम करने लगेगा।