बच्चों का 'दिमाग खराब' कर रहा है सोशल मीडिया!

नई स्टडी में सामने आया है कि सोशल मीडिया ऐप्स के चलते बच्चों के दिमागी विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

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Written by हेमन्त कुमार, अपडेटेड: 10 दिसंबर 2025 07:52 IST
ख़ास बातें
  • ADHD का फुल फॉर्म होता है अटेंशन डेफिसिट हाइपएक्टिविटी डिसॉर्डर
  • इसमें पीड़ित व्यक्ति किसी चीज पर फोकस नहीं कर पाता है
  • सोशल मीडिया के बहुत ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों में ADHD के लक्षण बढ़ रहे

सोशल मीडिया ऐप्स के चलते बच्चों के दिमागी विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है- स्टडी

Photo Credit: freepik

इंटरनेट के आने के बाद स्मार्टफोन, और स्मार्टफोन के साथ ही आया सोशल मीडिया। इन तीनों की तिकड़ी जब साथ आई तो लोग अधिकतर समय इंटरनेट पर बिताने लगे। अब सोशल मीडिया एक चलन बन चुका है और इससे कोई अछूता नहीं है। हर उम्र का व्यक्ति, चाहे वह जवान हो, बूढ़ा हो या बच्चा, हरकोई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे Facebook, Instagram, Snapchat आदि पर अपनी जिंदगी के पलों को साझा करता है। ये ऐप्स पूरा दिन यूजर का ध्यान अपनी ओर लगाए रखते हैं। ऐप्स से मिलते नोटिफिकेशंस यूजर को ऐप खोलने पर मजबूर करते हैं। एक नई स्टडी में सामने आया है कि इस तरह के सोशल मीडिया ऐप्स के चलते बच्चों के दिमागी विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। आइए जानते हैं विस्तार से। 

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स जैसे Facebook, Instagram, Snapchat आदि के अत्यधिक इस्तेमाल से बच्चों के दिमागी विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। अमेरिका में इसे लेकर एक हालिया स्टडी की गई है जिसमें हजारों बच्चों को शामिल किया गया। स्टडी कहती है कि ऐप्स पर लगातार स्क्रॉलिंग, और पूरा दिन मिलते नोटिफिकेशंस केवल उनका समय बर्बाद नहीं कर रहे, बल्कि उनमें ADHD जैसे लक्षण पैदा कर रहे हैं। 

क्या होता है ADHD 
ADHD का फुल फॉर्म होता है अटेंशन डेफिसिट हाइपएक्टिविटी डिसॉर्डर (Attention Deficit Hyperactivity Disorder) यानि ऐसी बीमारी जिसमें पीड़ित व्यक्ति किसी चीज पर फोकस नहीं कर पाता है, और उसमें हमेशा एक बेचैनी, और उतावलापन रहता है जो उसे एक जगह टिकने नहीं देता और शांति से सोचने नहीं देता। उसका फोकस कम होता जाता है और चीजों पर ध्यान केंद्रित करना मुश्किल होता जाता है। 

सोशल मीडिया बढ़ा रहा ADHD 
नई रिसर्च कहती है कि सोशल मीडिया के बहुत ज्यादा इस्तेमाल से बच्चों में ADHD के लक्षण बढ़ते नजर आते हैं। स्टडी को स्वीडन के कारोलिंस्का इंस्टीट्यूट और ओरेगन हेल्थ एंड साइंस यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने मिलकर कंडक्ट किया है। यह स्टडी अमेरिका में लंबे समय से चल रही ABCD स्टडी का एक हिस्सा है। स्टडी के दौरान शोधकर्ताओं ने बच्चों द्वारा सोशल मीडिया को दिए जा रहे समय पर फोकस किया। 

नतीजों में सामने आया कि औसत तौर पर भागीदारों ने एक दिन के अंदर 2.3 घंटे टीवी, या ऑनलाइन वीडियो देखने में बिताए, 1.4 घंटे तक सोशल मीडिया चलाया, और 1.5 घंटे तक वीडियो गेम खेले। इन सबमें सोशल मीडिया का इस्तेमाल वह कारण पाया गया जिससे बच्चों में ध्यान न लगा पाने जैसी परेशानी पैदा हो रही है। वीडियो गेम खेलने और टीवी देखने से ऐसे लक्षण पैदा नहीं हुए। 

नोटिफिकेशन, मैसेज, अपडेट डाल रहे असर 
स्टडी से जुड़े प्रोफेसर टॉर्केल क्लिंगबर्ग ने कहा कि ये नतीजे बताते हैं कि अन्य प्रकार के डिजिटल मीडिया की तुलना में सोशल प्लेटफॉर्म एक अलग ही चुनौती पैदा कर रहे हैं। प्रोफेसर ने तर्क दिया कि लगातार मिलने वाले नोटिफिकेशन, मैसेज और अपडेट दिमाग की फोकस्ड रहने की क्षमता को बुरी तरह से प्रभावित करते हैं। स्टडी खासतौर पर सोशल मीडिया को इसके लिए जिम्मेदार ठहराती है। सिर्फ एक मैसेज ही एक बच्चे को उसके होमवर्क या अन्य किसी काम से दिमागी रूप से भटकाने के लिए काफी है। 

13 साल का बच्चा बिता रहा 2.5 घंटे
स्टडी ने इस बात पर भी जोर दिया कि जैसे जैसे बच्चा बड़ा होता जाता है सोशल मीडिया पर वह ज्यादा समय बिताने लगता है। 9 साल की उम्र में वह जहां 30 मिनट समय सोशल मीडिया पर बिता रहा था, 13 साल की उम्र यह बढ़कर 2.5 घंटे हो चुका है। यह काफी चिंताजनक बात है जबकि अधिकतर प्लेटफॉर्म्स ने अकाउंट बनाने की न्यूनतम उम्र 13 साल कर रखी है। 
 

 

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हेमन्त कुमार Gadgets 360 में सीनियर ...और भी

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