अमेरिका में डॉक्टरों ने एक ब्रेन डेड व्यक्ति में सूअर की किडनी लगाकर नया कारनामा कर दिखाया है। इस सर्जरी में 61 दिन का समय लगा जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इतनी लम्बी सर्जरी अभी तक नहीं की गई थी। यह किडनी जेनेटकली मॉडिफाइड बताई जा रही है, यानी कि जेनेटिक स्तर पर इसमें बदलाव के बाद यह लगाई गई। आइए जानते हैं इस खास सर्जरी के बारे में कि यह मेडिकल क्षेत्र के लिए क्यों महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
आपने किडनी ट्रांसप्लांट के बारे में अक्सर सुना होगा। हम जानते हैं कि एक आदमी की
किडनी दूसरे आदमी में लगाई जा सकती है। NDTV के
अनुसार, अमेरिका में डॉक्टरों ने एक ब्रेन डेड आदमी में
सूअर की किडनी लगाने में कामयाबी पाई है। यह सर्जरी इसलिए बहुत मायने रखती है क्योंकि इससे अब जानवरों और मनुष्यों के बीच अंगों के ट्रांसप्लांट के दरवाजे खुल गए हैं।
ब्रेन डेड व्यक्ति ऐसे व्यक्ति को कहते हैं जिसमें दिमागी तौर पर कोई चेतना नहीं बची होती है। ऐसे व्यक्ति को कानूनी तौर पर मृत घोषित कर दिया जाता है क्योंकि बिना किसी सपोर्ट के ये सांस नहीं ले सकते हैं। यानि कि इनका सांस लेना मशीनों के सहारे निर्भर करता है। इसलिए ऐसे व्यक्तियों के शरीर को साइंस के प्रयोगों के लिए कई बार दान कर दिया जाता है।
रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिका में 1 लाख से ज्यादा लोगों को ट्रांसप्लांट का इंतजार है। इसमें 88,000 लोग ऐसे हैं जिनको किसी की किडनी की आवश्यकता है। ऐसे में सूअर की किडनी का सफलतापूर्वक एक इंसान में लगाया जाना बड़ी उपलब्धि कहा जा सकता है। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी लैंगॉन ट्रांसप्लांट इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर रॉबर्ट मॉन्टगॉमेरी ने कहा कि इस सर्जरी के दौरान उन्होंने बहुत कुछ सीखा है और यह भविष्य के लिए नई उम्मीद लेकर आया है।
जिस सूअर की किडनी इसके लिए इस्तेमाल की गई, वह वर्जिनिया आधारित बायोटेक कंपनी रेवीविकॉर से लाया गया था। इन सूअरों को यहां प्राकृतिक प्रक्रिया के तहत जन्माया जाता है, न कि क्लोनिंग की जाती है। इससे पहले 1984 में एक नवजात में एक बबून का दिल ट्रांसप्लांट किया गया था। लेकिन वह केवल 20 दिनों तक ही जिंदा रह पाया था।
वर्तमान में डॉक्टर सूअरों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं क्योंकि विज्ञान का मानना है कि सूअरों के अंग मनुष्यों के लिए ज्यादा कारगर साबित हो सकते हैं। इनका साइज, जल्दी से बढ़ने की क्षमता आदि इन्हें इसके लायक बनाते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ मेरीलैंड मेडिकल स्कूल में पहली बार जनवरी, 2022 में सूअर के दिल को किसी मनुष्य में ट्रांसप्लांट किया गया था। दो महीने तक वह व्यक्ति जिंदा रह पाया था। उसके बाद उसकी मृत्यु हो गई थी।