हमारी आकाशगंगा से आ रहा रेडियो सिग्‍नल, साइंटिस्‍ट हैरान

पल्सर एक रोटेटिंग (घूर्णन) न्यूट्रॉन तारा है, जिसमें नियमित अंतराल पर रेडिएशन होता है।

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गैजेट्स 360 स्टाफ, अपडेटेड: 21 मार्च 2022 17:03 IST
ख़ास बातें
  • पल्सर एक रोटेटिंग (घूर्णन) न्यूट्रॉन तारा है
  • इसमें नियमित अंतराल पर रेडिएशन होता है
  • यह कुछ मिलीसेकंड से सेकंड तक होता है

रिसर्चर्स ने इस रहस्‍यमयी सिग्‍नल को 'GLEAM-X J162759.5-523504.3' नाम दिया है।

Photo Credit: Instagram/Nasa

हमारी आकाशगंगा यानी ‘मिल्‍की वे' के छुपे हुए रहस्‍य वैज्ञानिकों समेत पूरी दुनिया को हैरान करते हैं। अब वैज्ञानिकों ने आकाशगंगा से निकलने वाले एक रहस्यमयी रेडियो सिग्नल का पता लगाया है। इस सिग्‍नल ने वैज्ञानिकों को आश्‍चर्य में डाल दिया है। उनका कहना है कि संभवत: यह सिग्‍नल एक सफेद बौने पल्सर से निकल रहा है। पल्सर एक रोटेटिंग (घूर्णन) न्यूट्रॉन तारा है, जिसमें नियमित अंतराल पर रेडिएशन होता है। यह कुछ मिलीसेकंड से सेकंड तक होता है। रिसर्चर्स ने इस रहस्‍यमयी सिग्‍नल को 'GLEAM-X J162759.5-523504.3' नाम दिया है। वॉशिंगटन यूनिवर्सिटी के जोनाथन काट्ज ने अपने रिसर्च पेपर में इस रहस्‍यमयी सिग्नल की विशेषताओं के बारे में लिखा है कि पल्‍सर एस्‍ट्रोनॉमी के शुरुआती दिनों से ही पल्सर जैसी गतिविधि दिखाने वाले एक रोटेटिंग मैग्‍नेटिक वाइट तारे के बारे में अटकलें लगाई जाती रही हैं।

पल्सर बहुत तेजी से घूमते हैं और इस तरह से कोण बनाते हैं कि चुंबकीय ध्रुवों से रेडियो तरंगों की किरणें हर चक्कर में पृथ्वी के ऊपर से गुजरती हैं। वैज्ञानिक आश्‍चर्यचकित हैं कि क्या सफेद बौने स्‍टार्स में भी ऐसा ही व्यवहार देखा जा सकता है। जोनाथन काट्ज ने अपना रिसर्च पेपर प्रीप्रिंट सर्वर arXiv पर अपलोड कर दिया है। इसका रिव्‍यू होना अभी बाकी है। 

यह सिग्‍नल जहां से आता है, वह पृथ्वी से लगभग 4,000 प्रकाश वर्ष दूर स्थित है। इस ऑब्‍जेक्‍ट के बारे में कई वैज्ञानिकों ने स्‍टडी की है। इनमें ऑस्ट्रेलियाई रिसर्चर्स भी शामिल हैं, जिन्होंने पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया में स्थित मर्चिसन वाइडफील्ड एरे नाम के टेलीस्‍कोप का इस्‍तेमाल करके इसकी खोज की थी। जनवरी और मार्च 2018 के बीच टेलीस्कोप द्वारा जुटाए गए डेटा में प्रत्येक 18.18 मिनट में लगभग 30 से 60 सेकंड के लिए इस ऑब्‍जेक्‍ट को तेज गति से स्पंदित होते हुए दिखाया गया है। 

तारों से जुड़ी एक और खबर हमने आपको बीते दिनों बताई थी। जब किसी तारे में विस्‍फोट होता है, तो वह बहुत अधिक चमकदार हो जाता है। इसे सुपरनोवा कहते हैं। यूरोपियन सदर्न ऑब्जर्वेटरी (ESO) ने कार्टव्हील आकाशगंगा में हुए एक विस्फोट को तस्‍वीरों में कैद किया है। यह विस्‍फोट एक तारे में हुआ। इस सुपरनोवा का नाम SN2021afdx है, जिसे टाइप II सुपरनोवा के तौर पर पहचाना गया है। इस प्रकार का सुपरनोवा तब बनता है, जब एक बड़े तारे का ईंधन यानी फ्यूल खत्म हो जाता है। यह ईंधन तारे के गुरुत्‍वाकर्षण के लिए जरूरी होता है और उसे ढहने से बचाता है। 
 
 

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