हबल स्थिरांक (Hubble constant) ब्रह्मांड विज्ञान (cosmology) में सबसे महत्वपूर्ण संख्याओं में से एक है। यह हमें बताता है कि ब्रह्मांड कितनी तेजी से विस्तार कर रहा है। इस रेट को मापने के लिए अलग-अलग तरीके हैं। हालांकि ब्रह्मांड की उम्र, इतिहास जैसे सवालों को समझने के लिए हबल स्थिरांक का सटीक होना जरूरी है। शिकागो यूनिवर्सिटी के दो खगोल भौतिकीविदों द्वारा किया गया नया अध्ययन इस कैलकुलेशन को करने का एक तरीका प्रदान करता है। इसके तहत टकराने वाले ब्लैक होल के जोड़े का इस्तेमाल करते हुए ब्रह्मांड के विकास को समझा जा सकता है।
वैज्ञानिकों के अनुसार, 'स्पेक्ट्रल सायरन' नाम की नई तकनीक ब्रह्मांड के शुरुआती वर्षों के बारे में जानकारी प्रदान कर सकती है। स्टडी के अनुसार कभी-कभी दो ब्लैक होल आपस में टकराते हैं। यह घटना इतनी शक्तिशाली है कि यह एक स्पेस-टाइम की लहर पैदा करती है जो पूरे ब्रह्मांड में यात्रा करती है। इन तरंगों को गुरुत्वाकर्षण तरंगों के रूप में भी जाना जाता है।
रिपोर्ट के अनुसार, US लेजर इंटरफेरोमीटर ग्रेविटेशनल-वेव ऑब्जर्वेटरी (LIGO) और इटैलियन ऑब्जर्वेटरी वर्गो उन तरंगों को पिक कर सकती हैं। पिछले कुछ साल में LIGO और वर्गो ने लगभग 100 जोड़े ब्लैक होल टकराने से रीडिंग जुटाई है। हरेक टक्कर के सिग्नल में इस बात की जानकारी है कि ब्लैक होल कितने विशाल थे। हालांकि सिग्नल अंतरिक्ष में घूमता रहा है और उस दौरान ब्रह्मांड का विस्तार हुआ है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह सिग्नल हमारे ब्रह्मांड की गणना करने में मदद कर सकते हैं। वैज्ञानिकों का मानना है कि एक कैलिब्रेशन टूल के रूप में ब्लैक होल हमें नई जानकारियों से रू-ब-रू करा सकते हैं।
वैज्ञानिक उत्साहित हैं क्योंकि भविष्य में जैसे-जैसे LIGO ऑब्जर्वेट्री की क्षमताओं का विस्तार होगा, ब्लैक होल के जरिए ब्रह्मांड को समझने का तरीका इसके शुरुआती वर्षों को लेकर अनूठी जानकारी सामने ला सकता है। स्टडी के अनुसार इस मेथड से ब्रह्मांड की गणना को लेकर हमारी गलतियों में कमी आ सकती है, क्योंकि ब्लैक होल की पूरी आबादी का इस्तेमाल करके यह मेथड सीधे तौर पर गलतियों की पहचान करती है खुद को कैलिब्रेट कर सकती है। हबल स्थिरांक की गणना करने के लिए इस्तेमाल की जाने वालीं बाकी मेथड तारों और आकाशगंगाओं की भौतिकी की हमारी वर्तमान समझ पर निर्भर करती हैं। नई मेथड इनसे काफी अलग है। स्टडी के अनुसार यह पूरी तरह से आइंस्टीन के गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत पर निर्भर करती है, जिसका अच्छी तरह से अध्ययन किया गया है।
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