भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास (IIT Madras) के रिसर्चर्स धान के कचरे को अपसाइकल करने और सुपरकैपेसिटर बनाने के लिए तकनीक विकसित करेंगे। संस्थान का कहना है कि यह तकनीक उत्तर भारत में पराली जलाने और अन्य कृषी से संबंधित अन्य कचरे को सही तरीके से जलाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान मद्रास ने
प्रेस रिलीज के जरिए बताया है कि रिसर्चर्स ने औद्योगों के काम आने के लिए कच्चे माल के निर्माण के लिए धान के कचरे को अपसाइकिल करने के लिए एक पर्यावरण-अनुकूल टेक्नोलॉजी विकसित करने की योजना बनाई है। ये टेक्नोलॉजी किसानों को कमाई का एक अतिरिक्त साधन देगी, क्योंकि धान के कचरे का उपयोग उन एनर्जी डिवाइस के प्रोडक्शन के लिए किया जा सकता है, जिनका उद्योग द्वारा उपयोग किया जा सकता है।
संस्थान का कहना है कि इस टेक्नोलॉजी के चलते उत्तर भारत में पराली जलाने और कृषि से संबंधित अन्य कचरों को जलाने को कम करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है। सुपरकैपेसिटर बनाने में एक प्रमुख घटक, इस्तेमाल करने योग्य एक्टिव कार्बन विकसित करने के लिए शोधकर्ता जैविक कचरे, विशेष रूप से रसोई के कचरे के साथ अपने काम के जरिए एक नई 'फार्म-एनर्जी सिनर्जी' को बढ़ावा दे रहे हैं।
बताया गया है कि धान के कचरे से पैदा हुई एक्टिव कार्बन से बने सुपरकैपेसिटर, इलेक्ट्रॉनिक्स, एनर्जी और कृषि क्षेत्रों में उपभोक्ताओं के लिए लाभदायक है और सुपरकैपेसिटर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता विकसित करने में मदद कर सकते हैं।
संस्थान की एक विज्ञप्ति में कहा गया है कि सुपरकैपेसिटर और सुपरकैपेसिटर-आधारित ऊर्जा भंडारण तकनीक से संबंधित आत्मनिर्भरता देश के भीतर आईपी उत्पादन और रोजगार को बढ़ाएगी।
टीजू थॉमस, एसोसिएट प्रोफेसर, धातुकर्म और सामग्री विभाग, IIT मद्रास का कहना है कि "समाधान धान के कचरे को व्यावसायिक मानक कार्बन सामग्री में बदलने और सक्रिय कार्बन के उपयोग को सुपरकैपेसिटर बनाने के लिए उपयोग करने की अनुमति देगा जो बाजार का अनुपालन करते हैं।"