ग्लोबल वार्मिंग को हराने के लिए इलेक्ट्रिक वीकल्स (ईवी) एक ताकतवर वेपन हैं। इसके बावजूद दुनिया के देशों में इनका प्रभाव अलग-अगल है। डेटा विश्लेषण से पता चलता है कि कुछ जगहों पर इलेक्ट्रिक वीकल्स, गैसोलीन मॉडल से भी अधिक प्रदूषण करते हैं।
रिसर्च कंसल्टेंसी रेडिएंट एनर्जी ग्रुप (REG) के कंपाइल डेटा के मुताबिक, यूरोप, जहां दुनियाभर के मुकाबले इलेक्ट्रिक वीकल्स की सेल तेज हुई है, उसी यूरोप के देश पोलैंड और कोसोवो में इलेक्ट्रिक वीकल्स हकीकत में ज्यादा कार्बन उत्सर्जन पैदा करते हैं, क्योंकि ग्रिडों की कोयले पर निर्भरता है। हालांकि इस मामले में यूरोप के आसपास की स्थिति बेहतर है।
रॉयटर्स के साथ शेयर की गई स्टडी के अनुसार, सबसे बेहतरीन प्रदर्शन स्विट्जरलैंड का है, जो गैसोलीन वीकल्स की तुलना में 100 प्रतिशत कार्बन बचत करता है। नॉर्वे 98 प्रतिशत, फ्रांस 96 प्रतिशत, स्वीडन 95 प्रतिशत और ऑस्ट्रिया 93 प्रतिशत के साथ बेहतर प्रदर्शन करने वाले देश हैं। कार्बन बचत के मामले में साइप्रस 4 प्रतिशत, सर्बिया 15 प्रतिशत, एस्टोनिया 35 प्रतिशत और नीदरलैंड 37 प्रतिशत योगदान दे रहे हैं। यूरोप के सबसे बड़े कार मेकर जर्मनी में एक इलेक्ट्रिक वीकल ड्राइवर, मिक्स पावर पर निर्भर होने के बावजूद ग्रीनहाउस गैसों को कम करने में 55 फीसदी योगदान देता है।
जर्मनी या स्पेन जैसे देश, जहां सौर और पवन ऊर्जा में बड़े निवेश हैं, वहां इस रिन्यूएबल एनर्जी के स्टोरेज की कमी है। वहां इलेक्ट्रिक वीकल चलाते हुए कितना कार्बन बचाया गया, यह इस पर निर्भर करता है कि दिन में किस वक्त गाड़ी को चार्ज किया गया। यहां रात की तुलना में दिन में गाड़ी चार्ज करने पर 16-18 प्रतिशत अधिक कार्बन की बचत होती है, क्योंकि दोपहर में सूरज और हवा की मदद से बन रही बिजली से गाड़ी चार्ज होती है, जबकि रात में ग्रिड के गैस या कोयले से चलने की संभावना अधिक होती है।
यूरोप के ट्रांसमिशन सिस्टम ऑपरेटर ट्रांसपेरेंसी मंच ENTSO-E और यूरोपीय पर्यावरण एजेंसी (EEA) के पब्लिक डेटा के आधार पर किया गया यह विश्लेषण COP26 summit में बुधवार की चर्चा से पहले आया था।
इसने दिखाया है कि उत्सर्जन को कम करने के लिए ऑटो इंडस्ट्री की क्षमता बिजली ग्रिड को डी-कार्बोनाइज करने और रिन्युएबल एनर्जी को स्टोर करने के बेहतर तरीके खोजने पर निर्भर करती है। लिथियम-आयन बैटरी केवल चार घंटे तक पूरी क्षमता से एनर्जी स्टोर करने में सक्षम हैं, इसका मतलब है कि दिन में सौर और पवन ऊर्जा का अच्छा खासा इस्तेमाल करने वाले देश रात में गाडि़यां चार्ज करने के लिए कोयला आधारित एनर्जी पर निर्भर रहते हैं।
इलेक्ट्रिक और गैसोलीन से चलने वाली गाडि़यों के बीच कार्बन उत्सर्जन का अंतर पिछले कुछ वर्षों में कम हुआ है, क्योंकि गाड़ी बनाने वाली कंपनियां यह जानती हैं कि उन्हें यूरोपीय संघ के कार्बन कटौती लक्ष्यों को पूरा करना होगा। यही वजह है कि यूरोप में गैसोलीन से चलने वाली नई कारों की कार्बन इंटेसिटी 2006 से 2016 के बीच औसतन 25 प्रतिशत कम हो गई है।
पिछली तिमाही में यूरोप में बेची गईं 5 गाड़ियों में से एक इलेक्ट्रिक थी। जनरल मोटर्स, स्टेलंटिस और वोक्सवैगन सहित तमाम ऑटोमेकर्स ने आने वाले साल में यूरोप में ज्यादातर इलेक्ट्रिक वीकल्स ही बेचने का लक्ष्य रखा है। जनरल मोटर्स 2022 तक एक इलेक्ट्रिक यूरोपीय लाइनअप के लिए कमिटेड है और वोक्सवैगन का टारगेट 2030 तक 70 प्रतिशत इलेक्ट्रिक गाड़ियों को बेचने का है।