वैज्ञानिकों ने खोज निकाला सबसे नया पल्‍सर तारा, उम्र है महज 14 साल!

पल्सर एक प्रकार का न्यूट्रॉन तारा होता है। न्यूट्रॉन तारों का निर्माण तब होता है, जब एक मेन कैटिगरी का तारा अपने खुद के साइज और वजन की वजह से कंप्रेस हो जाता है।

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गैजेट्स 360 स्टाफ, अपडेटेड: 22 जून 2022 19:31 IST
ख़ास बातें
  • इसे ‘पल्सर विंड नेबुला’ भी कहा जाता है
  • अभी खोजे गए न्‍यूट्रॉन तारे का नाम ‘वीटी 1137-0337’ है
  • यह अबतक खोजा गया सबसे नया पल्‍सर है

बीते दिनों पता चला था कि हमारी आकाशगंगा यानी मिल्‍की-वे में मौजूद तारे भी ‘कंपन' का अनुभव करते हैं।

खगोलविदों ने एक रोमांचक नई खोज की है। उन्‍होंने एक नए जन्‍मे पल्सर (pulsar) का पता लगाया है, जो सिर्फ 14 साल का हो सकता है। एक सुपरनोवा में हुए विस्फोट और उससे निकली ऊर्जा के बाद वैज्ञानिकों ने इस पल्सर ऑब्‍जर्व किया। सुपरनोवा में विस्‍फोट से पल्‍सर काफी पतला हो गया। इस खगोलीय निर्माण को ‘पल्सर विंड नेबुला' या ‘प्लेरियन' के रूप में जाना जाता है। इस पल्‍सर को पृथ्वी से 395 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर एक आकाशगंगा में पाया गया है। सबसे पहले इसे एक ऑब्‍जेक्‍ट के रूप में साल 2018 में न्यू मैक्सिको में स्थित वेरी लार्ज एरे स्काई सर्वे (VLASS) के जरिए देखा गया था। यह एक युवा पल्सर है, जिसकी उम्र केवल 14 वर्ष हो सकती है। यह दावा एस्‍ट्रोनॉमी के प्रोफेसर ग्रेग हॉलिनन ने किया है, जो इस पल्‍सर की पहचान करने वाली टीम में शामिल थे। 

हॉलिनन के पीएचडी स्‍टूडेंट और इस खोज में उनका साथ देने वाले डिलन डोंग ने कहा कि हम जो देख रहे हैं वह एक ‘पल्सर विंड नेबुला' है।

पल्सर एक प्रकार का न्यूट्रॉन तारा होता है। न्यूट्रॉन तारों का निर्माण तब होता है, जब एक मेन कैटिगरी का तारा अपने खुद के साइज और वजन की वजह से कंप्रेस हो जाता है। उसके बाद एक सुपरनोवा विस्फोट में यह ढह जाता है, जिसकी बदौलत पल्‍सर तारे बनते हैं। अभी खोजे गए न्‍यूट्रॉन तारे का नाम ‘वीटी 1137-0337' है।

तारों से जुड़ी अन्‍य खबरों की बात करें, तो बीते दिनों पता चला था कि हमारी आकाशगंगा यानी मिल्‍की-वे में मौजूद तारे भी ‘कंपन' का अनुभव करते हैं। वैज्ञानिकों ने पता लगाया है कि आकाशगंगा में स्थित तारे (या ग्रह) ‘स्टारक्वेक' को एक्‍सपीरियंस करते हैं। जैसे पृथ्‍वी पर सुनामी आती है, वैसा ही कुछ अभास तारों में भी होता है। दावा तो यह भी है कि ये स्टारक्वेक इतने पावरफुल हैं कि किसी तारे का आकार भी बदल सकते हैं। यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी (ESA) के मिल्की वे-मैपिंग गैया मिशन द्वारा यह खोज की गई है। 

इस खोज तक पहुंचने में गैया स्‍पेस ऑब्‍जर्वेट्री द्वारा जुटाए गए डेटा की अहम भूमिका रही। इस ऑब्‍जर्वेट्री ने लगभग दो अरब सितारों के आंकड़े जुटाए थे, जिनके आधार पर यह खोज की गई है। यूरोपीय स्‍पेस एजेंसी की ओर से बताया गया है कि पहले भी ऑब्‍जर्वेट्री को तारों में कंपन का पता चलता था। तारों में यह कंपन उनके आकार को बनाए रखने के लिए होता था। अब जिन कंपनों के बारे में पता चला है, वह सुनामी की तरह हैं। 
 
 

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