एक्सोप्लैनेट्स (Exoplanets) वैज्ञानिकों के लिए उम्मीद बने हुए हैं। दुनियाभर की अंतरिक्ष एजेंसियों को लगता है कि पृथ्वी से बाहर जीवन की तलाश एक एक्सोप्लैनेट पर पूरी हो सकती है। एक्सोप्लैनेट उन ग्रहों को कहते हैं, जो हमारे सूर्य की नहीं बल्कि किसी और तारे की परिक्रमा करते हैं। अब भारत की फिजिकल रिसर्च लेबोरेटरी (PRL) के रिसर्चर्स ने एडवांस्ड PARAS-2 स्पेक्ट्रोग्राफ का इस्तेमाल करते हुए TOI-6651b नाम के एक्सोप्लैनेट की पहचान की है। यह एक घना और शनि ग्रह के आकार का एक्सोप्लैनेट है, जो हमारे सूर्य जैसे तारे की परिक्रमा कर रहा है।
इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, PRL के रिसर्चर्स ने यह चौथा एक्सोप्लैनेट खोजा है। यह रिसर्च दुनियाभर की एजेंसियों के लिए मददगार होगी, क्योंकि स्पेस एजेंसियां लगातार नए एक्सोप्लैनेट्स पर रिसर्च कर रही हैं।
TOI-6651b में कई खूबियां हैं। इसका द्रव्यमान हमारी पृथ्वी का 60 गुना है और यह पृथ्वी से करीब 5 गुना बड़ा है। वैज्ञानिकों ने इस एक्सोप्लैनेट को ब्रह्मांड में ऐसी जगह पर खोजा है, जहां इस आकार के ग्रह शायद ही मिलते हैं।
इलाके को ‘नेप्च्यूनियन रेगिस्तान' कहा जाता है। यह ब्रह्मांड का रहस्यमयी इलाका है। वहां कम द्रव्यमान वाले ग्रह ही मिलते हैं, लेकिन TOI-6651b का आकार तो शनि ग्रह के जितना है। यह अपने सूर्य का एक चक्कर सिर्फ 5.06 दिन में लगा लेता है यानी यहां एक साल सिर्फ 5 दिन का होता है। यही नहीं, इसका तारा भी हमारे सूर्य से थोड़ा बड़ा है और गर्म भी अधिक है।
एक्सोप्लैनेट TOI-6651b का घनत्व अधिक है। इसका लगभग 87 फीसदी हिस्सा चट्टानों और आयरन से भरपूर मटीरियल से बना है। बाकी में हाइड्रोजन और हीलियम की लेयर है। वैज्ञानिकों को लगता है कि अतीत में इस ग्रह में कई प्रक्रियाएं हुई होंगी। अन्य ऑब्जेक्ट्स के साथ इसका विलय हुआ होगा। इसके अधिक तापमान के कारण एक्सोप्लैनेट ने अपना ज्यादातर वायुमंडल गंवा दिया होगा।
TOI-6651b ने वैज्ञानिकों में उम्मीद जगाई है। उन्हें लगता है कि यह हमारे प्लैनेटरी सिस्टम को लेकर नई समझ डेवलप कर सकता है। इस खोज ने भारत की स्पेस रिसर्च को भी मुकाम दिया है। अभी तक नासा व अन्य एजेंसियां ही एक्सोप्लैनेट्स खोजती रही हैं। भारत इसमें नया प्लेयर बन सकता है।