Meta Brain Typing: आप सोचेंगे और यह टाइप करेगा, जानें कैसे काम करती है यह टेक्नोलॉजी?

Meta के रिसर्चर्स ने इन ब्रेन सिग्नल्स को एनेलाइज करने के लिए Brain2Qwerty नाम का एक AI मॉडल भी ट्रेन किया। जब इसने कीबोर्ड पर टाइप किया तो AI ने डेटा के पैटर्न को स्पेशल करैक्टर्स से मिलाना सीखा।

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Written by नितेश पपनोई, अपडेटेड: 11 फरवरी 2025 15:57 IST
ख़ास बातें
  • Meta लंबे समय से ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (BCI) पर काम कर रहा है
  • हाल ही में उन्होंने एक नॉन-इनवेसिव ब्रेन-टाइपिंग सिस्टम का डेमो दिखाया
  • इसमें EEG (Electroencephalography) और AI मॉडल्स का इस्तेमाल किया गया है

Photo Credit: Unsplash/ Steve Johnson

Meta ने हाल ही में ब्रेन-टाइपिंग टेक्नोलॉजी का डेमो दिया, जो सिर्फ दिमाग से सोचकर टेक्स्ट टाइप करने की सुविधा देता है। यह एक नॉन-इनवेसिव (बिना सर्जरी वाली) तकनीक है, जो न्यूरल सिग्नल्स को पढ़कर टेक्स्ट में बदलती है। हालांकि, इसे जल्द किसी प्रोडक्ट में देखने की संभावना कम है। हार्डवेयर की सीमाएं, डेटा प्राइवेसी, एथिकल सवाल और कानूनी अड़चनें इसे मार्केट-रेडी टेक्नोलॉजी नहीं बनने देतीं। दरअसल 2017 में, फेसबुक, जो अब मेटा है, ने इस इनोवेशन को असलियत बनाने पर विचार किया था। इस सिस्टम को काम करने के लिए बेहद महंगी मशीनों की जरूरत होती है। चलिए हम आपको इस टेक्नोलॉजी के बारे में विस्तार से समझाते हैं।
 

Meta Brain Typing: टेक्नोलॉजी कितनी एडवांस है?

Meta लंबे समय से ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस (BCI) पर काम कर रहा है। हाल ही में उन्होंने एक नॉन-इनवेसिव ब्रेन-टाइपिंग सिस्टम का डेमो दिखाया, जिसमें EEG (Electroencephalography) और AI मॉडल्स का इस्तेमाल किया गया। रिसर्च के मुताबिक, यह लगभग 80% सटीकता से दिमागी संकेतों को पढ़कर टेक्स्ट में बदल सकता है। MIT टेक्नोलॉजी रिव्यू के एक हालिया ब्लॉग के अनुसार, टेक्नोलॉजी एक सपेशल ब्रेन स्कैनर पर निर्भर करती है जिसे मैग्नेटोएन्सेफलोग्राफी (MEG) मशीन कहा जाता है, जो ब्रेन एक्टिविटी द्वारा बनाए गए छोटे मैग्नेटिक संकेतों का पता लगाता है। स्कैनर इतना बड़ा और संवेदनशील है कि पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के हस्तक्षेप को रोकने के लिए इसे एक खास डिजाइन किए गए कमरे में रखना पड़ता है।

Meta के रिसर्चर्स ने इन ब्रेन सिग्नल्स को एनेलाइज करने के लिए Brain2Qwerty नाम का एक AI मॉडल भी ट्रेन किया। जब इसने कीबोर्ड पर टाइप किया तो AI ने डेटा के पैटर्न को स्पेशल करैक्टर्स से मिलाना सीखा। समय के साथ, सिस्टम इतना सटीक हो गया कि यह सटीक अनुमान लगा सके कि कोई व्यक्ति 80% समय किस अक्षर के बारे में सोच रहा था।
 

वर्तमान में प्रेक्टिकल नहीं है यह टेक्नोलॉजी

अभी के EEG डिवाइसेस बड़े और महंगे हैं। इन्हें छोटे, सटीक और किफायती बनाने में समय लग सकता है। वहीं, हर व्यक्ति का ब्रेन पैटर्न अलग होता है, जिससे सभी के लिए एक यूनिवर्सल सिस्टम बनाना मुश्किल है। दिमाग से डेटा एक्सेस करना संवेदनशील मामला है। क्या कोई कंपनी आपके थॉट्स को स्टोर करेगी? वहीं, ब्रेन डेटा को लेकर कानूनी ढांचा नहीं बना है और यह टेक्नोलॉजी कई नैतिक बहसें खड़ी कर सकती है।

Meta Brain Typing एक रोमांचक टेक्नोलॉजी है, लेकिन यह अभी आम लोगों के लिए उपलब्ध नहीं होगी। इसमें कई टेक्निकल और एथिकल चुनौतियां हैं, जिन्हें हल करने में सालों लग सकते हैं। हालांकि, भविष्य में यह ब्रेन-कंट्रोल टेक्नोलॉजी को नई ऊंचाइयों पर ले जा सकती है।

 

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