साल भर से ज्यादा वक्त से देश में नेट न्यूट्रैलिटी के पक्ष में लेकर चल रही मुहिम की बड़ी जीत हुई है। भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने टेलीकॉम ऑपरेटर द्वारा अलग-अलग किस्म कंटेंट के लिए डिफरेंशियल प्राइसिंग पर रोक लगा दी है।
ट्राई ने नोटिफिकेशन जारी करके कहा है, ''कोई भी कंपनी कंटेंट के अलग-अलग कीमत की मांग नहीं कर सकती।''
ट्राई के इस फैसले से एयरटेल और फेसबुक को सबसे बड़ा झटका लगा है। दरअसल, फेसबुक की 'फ्री बेसिक्स' योजना पर भी नेट न्यूट्रैलिटी के उल्लंघन का आरोप लगा है। कंपनी कहती रही है कि इस योजना का मकसद ग्रामीण इलाकों के गरीब मोबाइल यूज़र को मुफ्त में इंटरनेट मुहैया कराने की है। फेसबुक की प्रस्तावित 'फ्री बेसिक्स' योजना में उपभोक्ता शिक्षा, हेल्थकेयर व रोजगार जैसी सेवाएं अपने मोबाइल फोन पर उस ऐप के जरिए नि:शुल्क (बिना किसी डेटा योजना के) हासिल कर सकते हैं जो कि इस प्लेटफॉर्म के लिए विशेष रूप से बनाया गया है।
आलोचकों ने कंपनी की इस पहल को नेट निरपेक्षता (नेट न्यूट्रैलिटी) के सिद्धांत का कथित उल्लंघन बताया था। आलोचकों का मानना है कि फेसबुक इस योजना का इस्तेमाल टॉर्जन हॉर्स की तरह इंटरनेट को नियंत्रित करने के लिए कर रही है।
भारत में इंटरनेट निरपेक्षता को लेकर सभी प्रमुख विवादों में दूरसंचार कंपनी एयरटेल का कहीं न कहीं हाथ रहा है। एयरटेल ने दिसंबर 2014 में इंटरनेट आधारित ओवर द टॉप (ओटीटी) सेवाओं के लिए अलग से शुल्क लगाने की घोषणा की थी, लेकिन उसके इस कदम को इंटरनेट की आजादी के खिलाफ बताते हुए सोशल मीडिया में खूब आलोचना हुई।
कंपनी के इस कदम को इंटरनेट की आजादी या इंटरनेट तक समान पहुंच अथवा इंटरनेट तटस्थता के खिलाफ बताया गया। सरकार ने भी इसके खिलाफ बयान दिया और अंतत: कंपनी ने इसे वापस ले लिया। लेकिन इससे इंटरनेट निरपेक्षता की बहस ने एक बार फिर जोर पकड़ लिया।
इसके बाद एयरटेल ने अप्रैल में एक नई पहल के जरिए फिर विवाद खड़ा कर दिया। कंपनी ने एक नया मार्केटिंग प्लेटफॉर्म 'एयरटेल ज़ीरो' पेश किया। कंपनी का कहना था कि इस प्लेटफॉर्म के जरिए उसके ग्राहक विभिन्न मोबाइल ऐप का नि:शुल्क इस्तेमाल कर सकेंगे। यानी इसके लिए उन्हें इंटरनेट खर्च नहीं करना होगा, क्योंकि यह खर्च ऐप बनाने वाली कंपनियां वहन करेंगी। कंपनी की इस पहल का भी कड़ा विरोध हुआ।
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