वैज्ञानिकों ने डेवलप किए ट्रांसपैरंट सोलर पैनल, घर में खिड़कियों की तरह हो सकते हैं इस्‍तेमाल

रिसर्चर्स ने एक नई मेथड के साथ ऑर्गेनिक सोलर सेल्‍स को डेवलप करने में कामयाबी हासिल की है, जिसे बड़े पैमाने पर प्रोडक्‍शन के लिए लाया जा सकता है।

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गैजेट्स 360 स्टाफ, अपडेटेड: 21 जुलाई 2022 16:32 IST
ख़ास बातें
  • इन पैनलों की लाइफ 30 साल तक है
  • वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक बनाई है कि इनका प्रोडक्‍शन तेजी से हो सकता है
  • भविष्‍य में इससे ग्रीन एनर्जी में एक नई क्रांति आ सकती है

मौजूदा समय में इस्‍तेमाल किए जाने वाले ज्‍यादातर सोलर सेल सिलिकॉन से बने होते हैं, जिसकी वजह से पैनल पूरी तरह से अपारदर्शी हो जाता है।

रिसर्चर्स के एक ग्रुप ने फोटोवोल्टिक सौर पैनल बनाने का एक नया तरीका डेवलप करने में कामयाबी हासिल की है जो प्रकाश यानी लाइट को गुजरने देता है। ये ट्रांसपैरंट सौर सेल एक नई ऊर्जा क्रांति शुरू कर सकते हैं, क्योंकि इन्हें ऑफ‍िसेज, घरों, फैक्ट्रियों और अन्य इमारतों में लगाया जा सकता है। और तो और घर की खिड़कियों को भी इनसे रिप्‍लेस किया जा सकता है, जो ग्रीन एनर्जी के प्रोडक्‍शन के लिए बहुत कम जगह लेते हैं। रिसर्चर्स ने एक नई मेथड के साथ ऑर्गेनिक सोलर सेल्‍स को डेवलप करने में कामयाबी हासिल की है, जिसे बड़े पैमाने पर प्रोडक्‍शन के लिए लाया जा सकता है। 

इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर और जौल जर्नल में पब्लिश स्‍टडी के लेखक स्टीफन फॉरेस्ट ने कहा कि सैद्धांतिक रूप से अब हम सेमीट्रांसपैरंट ऑर्गनिक सोलर सेल्‍स को दो मीटर बाई दो मीटर तक स्‍केल कर सकते हैं। 

मौजूदा समय में इस्‍तेमाल किए जाने वाले ज्‍यादातर सोलर सेल सिलिकॉन से बने होते हैं, जिसकी वजह से पैनल पूरी तरह से अपारदर्शी हो जाता है। वक्‍त के साथ सिलिकॉन फोटोवोल्टिक सेलों के डेवलपमेंट और रिसर्च में तेजी आई है। इसके अलावा कई और वैकल्पिक सोलर सेल टेक्‍नॉलजी जैसे ऑर्गेनिक सोलर सेल को भी धीरे-धीरे एक्‍स्‍प्‍लोर किया जा रहा है। लेकिन एफ‍िशिएंसी और लाइफ के मामले में ये सिलिकॉन पैनलों से पीछे हैं। अब रिसर्चर्स के ग्रुप ने 10 फीसदी की रिकॉर्ड एफ‍िशिएंसी और 30 साल की लाइफ वाले सोलर सेलों को डेवलप करने में कामयाबी हासिल की है। अपारदर्शी सिलिकॉन सौर पैनलों के मुकाबले पारदर्शी सौर पैनल कार्बनिक प्लास्टिक से बने होते हैं।

ऑर्गेनिक सोलर सेलों को व्यापक रूप से अपनाने में मुख्‍य परेशानी यह है कि इनकी मैन्‍युफैक्‍चरिंग के स्‍केल का मापना असंभव था। रिसर्चर्स ने इसके लिए एक मल्टीस्टेप पील-ऑफ पैटर्निंग टेक्निक डेवलप की है, जो माइक्रोन-स्केल कनेक्शन बना सकती है। इससे इनका प्रोडक्‍शन आसान हो जाता है। इन पैनलों में लगभग 50 फीसदी ट्रांसपैरंसी और ग्रीनिश टिंट है। यह इन्‍हें कमर्शल इस्‍तेमाल के लिए फ‍िट बनाती है। अगर ये सोलर पैनल भविष्‍य में ये अमल में लाए जाते हैं, तो ग्रीन एजर्नी के प्रोडक्‍शन में यह एक बड़ा कदम हो सकता है।
 
 

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