रिसर्चर्स ने छिपकली जैसे सरीसृप (reptile) की एक नई विलुप्त प्रजाति के अच्छी तरह से संरक्षित जीवाश्म की खोज की है। यह न्यूजीलैंड के तुआतारा के समान प्राचीन वंश से संबंधित है। गौरतलब है कि न्यूजीलैंड में पाई जाने वाली छिपकली तुआतारा को वैज्ञानिक जीवित जीवाश्म भी कहते हैं, क्योंकि यह करीब 19 करोड़ साल से पृथ्वी पर अपना वजूद बचाए हुए है। बहरहाल, वैज्ञानिकों की एक टीम ने नई प्रजाति Opisthiaamimus gregori (ओपिसथियामिमस ग्रेगोरी) के बारे में बताया है कि यह लगभग 15 करोड़ साल पहले नॉर्थ अमेरिका में स्टेगोसॉरस (Stegosaurus) और एलोसॉरस (Allosaurus) जैसे डायनासोर के साथ रहती थी। इस विलुप्त हो चुकी प्रजाति का साइज नाक से पूंछ तक लगभग 16 सेंटीमीटर (लगभग 6 इंच) रहा होगा, जो एक इंसान की हथेली में फिट होने जितना है। माना जा रहा है कि यह कीड़ों और अन्य अकशेरूकीय (invertebrates) को खाकर जीवित रहती होगी।
इस जीवाश्म को व्योमिंग के मॉरिसन फॉर्मेशन में एक साइट से
खोजा गया था और यह एक नई प्रजाति है, जिसे ओपिसथियामिमस ग्रेगोरी नाम दिया गया है। यह खोज नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री, यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन और नेचुरल हिस्ट्री म्यूजियम के वैज्ञानिकों की एक टीम ने की। उन्होंने जर्नल ऑफ सिस्टमैटिक पेलियोन्टोलॉजी में पब्लिश एक पेपर में इस नए जानवर के बारे में बताया है।
स्टडी के लेखकों में से एक और नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के क्यूरेटर मैथ्यू कैरानो ने कहा कि यह एक सामान्य छिपकली की तरह दिखती है, लेकिन यह 20 करोड़ साल से अधिक के एक संपूर्ण विकासवादी महाकाव्य का प्रतीक है।
व्योमिंग में पाए गए जीवाश्मों के आगे के अध्ययन से यह पता लगाने में मदद मिल सकती है कि यह जीव क्यों विलुप्त हो गए। एक समय में इनके वर्ग में प्रजातियों की विविधता हुआ करती थी, लेकिन आज न्यूजीलैंड के तुआतारा ही एकमात्र जीवित सदस्य है।
तुआतारा एक मोटे इगुआना जैसा दिखता है। हालांकि तुआतारा और उसके वंश का यह नया सदस्य ओपिसथियामिमस ग्रेगोरी हकीकत में छिपकली नहीं हैं। ये राइनोसेफेलियन हैं। यह एक वर्ग है जो लगभग 23 करोड़ साल पहले छिपकलियों से निकला था। एक समय में इनकी मौजूदगी दुनियाभर में थी। ये विभिन्न आकार के थे, लेकिन किन्हीं कारणों से ये विलुप्त होते गए क्योंकि छिपकलियां और सांप की मौजूदगी बढ़ गई थी।
नए जीवाश्म को एक संग्रहालय के कलेक्शन में रखा गया है, जहां आगे इसकी स्टडी की जाएगी। इससे रिसर्चर्स को भविष्य में यह समझने में मदद मिलेगी कि तुआतारा ही बचा हुआ राइनोसेफेलियन क्यों है।