एंटीबायोटिक दवाईयां खाने वाले सावधान! 2050 तक 4 करोड़ लोगों की जा सकती है जान- स्टडी

एंटीबायोटिक दवाईयों के बार-बार इस्तेमाल से बिमारी से जुड़े बैक्टीरिया, वायरस धीरे-धीरे रसिस्टेंस पैदा कर लेते हैं, जिससे दवाईयों का असर होना बंद हो जाता है। 1

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Written by हेमन्त कुमार, अपडेटेड: 19 सितंबर 2024 16:34 IST
ख़ास बातें
  • स्टडी में 204 देशों से 52 करोड़ डेटा पॉइंट्स को खंगाला गया
  • एंटीबायोटिक-रसिस्टेंस इंफेक्शन से बढ़ रही मौतें
  • 1990-2021 के बीच 10 लाख मौतें एंटीमाइक्रोबियल रसिस्टेंस (AMR) के कारण

एंटीबायोटिक दवाईयों का बढ़ता इस्तेमाल 4 करोड़ लोगों की मौत का कारण बन सकता है- स्टडी

Photo Credit: Pixabay/Vika_Glitter

एंटीबायोटिक दवाईयों का बढ़ता इस्तेमाल 4 करोड़ लोगों की मौत का कारण बन सकता है। हाल ही में हुई एक स्टडी कहती है कि अगर एंटीबायोटिक दवाईयों का ऐसे ही धड़ल्ले से इस्तेमाल होता रहा तो 2050 तक यह 4 करोड़ लोगों की जान ले लेगा। 

एंटीबायोटिक के बार-बार इस्तेमाल से बिमारी से जुड़े बैक्टीरिया, वायरस धीरे-धीरे रसिस्टेंस पैदा कर लेते हैं, जिससे कुछ समय बाद दवाईयों का असर होना बंद हो जाता है। इन्हें एंटीबायोटिक-रसिस्टेंस इंफेक्शन कहा जाता है। यानी ऐसे इंफेक्शन जिन पर अब एंटीबायोटिक दवाईयों का असर ही नहीं होगा। 

The Lancet में इससे संबंधित एक स्टडी पब्लिश की गई है, जो कहती है कि एंटीबायोटिक रसिस्टेंस के कारण होने वाली मौतें लगातार बढ़ रही हैं। यह बढ़ोत्तरी आने वाले दशकों में और तेज होने वाली है। स्टडी के सीनियर लेखक, और इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मैट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन, वाशिंगटन यूनिवर्सिटी, के डायरेक्टर क्रिस्टॉफर जे एल मुर्रे के मुताबिक,  'यह एक बड़ी समस्या है, और अभी यह ऐसे ही बनी रहेगी'। 

शोधकर्ता लगातार चेता रहे हैं कि एंटीबायोटिक रसिस्टेंस साधारण इंफेक्शन को भी घातक बना रहा है। रसिस्टेंस पैदा होने के बाद इसके इलाज में बहुत समय लग रहा है। स्टडी में 204 देशों से 52 करोड़ डेटा पॉइंट्स को खंगाला गया जिसमें इंश्योरेंस क्लेम, डेथ सर्टीफिकेट, हॉस्पिटल डिस्चार्ज आदि के रिकॉर्ड शामिल थे। एनालिसिस के बाद पाया गया कि 1990 से 2021 के बीच 10 लाख के लगभग मौतें एंटीमाइक्रोबियल रसिस्टेंस (AMR) के कारण हुई थीं। शोधकर्ताओं ने अनुमान लगाया है कि एंटीमाइक्रोबियल रसिस्टेंस के कारण होने वाली मौतों की दर अभी लगातार बढ़ती रहेगी। 

यहां पर एक और चौंकाने वाली बात कही गई है। स्टडी कहती है कि एंटीमाइक्रोबियल रसिस्टेंस के कारण होने वाली मौतों में बच्चों और बुजुर्गों में बिल्कुल विपरीत पैटर्न देखने को मिल रहा है। 5 साल से कम उम्र के बच्चों की AMR मौतों की दर 1990 से 2021 के बीच 50% कम हो गई है, जबकि 70 साल या उससे ऊपर के बुजर्गों के लिए यह दर 80 प्रतिशत तक बढ़ गई है। यह पैटर्न आगे भी जारी रहने का अनुमान है, इसलिए बुजुर्गों को एंटीबायोटिक रसिस्टेंस से ज्यादा खतरा होने वाला है। 
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स्टडी मांग करती है कि एंटीबायोटिक रसिस्टेंस को जीतने के लिए बड़े प्रयास करने की जरूरत है। सबसे पहले तो कोशिश हो कि इंफेक्शन को होने से रोका जाए, लोगों को एंटीबायोटिक रसिस्टेंस के बारे में अवगत कराया जाए ताकि खांसी-जुकाम जैसे इंफेक्शन में भी एंटीबायोटिक इस्तेमाल न हो। बल्कि साधारण इलाज जैसे नमक के पानी के गरारे, या औषधीय काढ़ा आदि तरीकों से इंफेक्शन को ठीक करने की कोशिश की जाए। 
 

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