वैज्ञानिकों की ओर से अंटार्कटिक महासागर को लेकर एक चिंताजनक बात कही गई है। धरती पर अंटार्कटिक महासागरीय धारा सबसे शक्तिशाली धारा मानी जाती है जो कि अब अपनी शक्ति खो रही है। इसका असर ग्लोबल ओशन सर्कुलेशन पर व्यापक रूप से पड़ सकता है। यानि कि अगर अंटार्कटिक महासागर की धारा कमजोर पड़ती है तो यह विश्व के अन्य महासागरों के धारा प्रवाह को भी प्रभावित करेगा। धारा प्रवाह को अंटार्कटिक सर्कमपोलर करंट (ACC) के नाम से जाना जाता है। वैज्ञानिक कह रहे हैं कि यह 2050 तक 20% धीमी हो चुकी होगी।
अंटार्कटिक महासागर की धारा कई अन्य महासागरों को जोड़ती है और हीट एक्सचेंज को रेगुलेट भी करती है। अगर यह कमजोर पड़ती है तो अंटार्कटिका की बर्फ और तेजी से पिघलना शुरू हो जाएगी। इसका असर दूरगामी रूप में समुद्र जल स्तर की वृद्धि के रूप में देखने को मिलेगा। यह वैश्विक तापमान को भी प्रभावित करेगी और समुद्र के ईकोसिस्टम को भी प्रभावित करेगा।
Environmental Research Letters में इस
स्टडी को प्रकाशित किया गया है। इसमें बताया गया है कि कैसे अंटार्कटिक की बर्फ पिघल रही है और यह अंटार्कटिक सर्कमपोलर करंट (ACC) को प्रभावित कर रही है। शोधकर्ताओं ने बर्फ की चादर और समुद्री जल के बीच परस्पर क्रिया का मॉडल तैयार किया और इसको स्टडी किया। पता चला है कि ताजा, ठंडे पिघले पानी के प्रवेश से महासागर का घनत्व बदल जाता है और सतह और गहरे पानी के बीच संवहन (convection) कम हो जाता है, जिससे धारा कमजोर हो जाती है।
धीमी धारा के क्या होंगे परिणाम
अंटार्कटिक सर्कमपोलर करंट (ACC) का धीमा पड़ जाना पूरे विश्व के वातावरण को प्रभावित करेगा। स्टडी कहती है कि अंटार्कटिक सर्कमपोलर करंट (ACC) अगर धीमा होता है तो वैश्विक महासागरीय सर्कुलेशन में खलल पैदा कर देगा। जैसे ही संवहन कमजोर पड़ता है, गर्म पानी अंटार्कटिक में भीतर तक जाकर मिलना शुरू हो जाएगा। यह बर्फ को और तेजी से पिघलाएगा और परिणामस्वरूप इससे समुद्र का स्तर तेजी से बढ़ने लगेगा। इससे समुद्र के किनारे बसे शहर पानी में डूबना शुरू हो जाएंगे। इसके साथ ही यह समुद्र के ईकोसिस्टम को व्यापक रूप से प्रभावित करेगा। यानी कि इस प्रक्रिया के जारी रहने से सिर्फ अंटार्कटिका ही नहीं, पूरे ग्रह के ओशन सर्कुलेशन पैटर्न बदलने लगेंगे।