• होम
  • फ़ोटो
  • इंटरनेट के चक्‍कर में धरती से खत्‍म हो सकता है जीवन! Ozone layer से जुड़ा है मामला, जानें

इंटरनेट के चक्‍कर में धरती से खत्‍म हो सकता है जीवन! Ozone layer से जुड़ा है मामला, जानें

Share on Facebook Gadgets360 Twitter ShareTweet Share Snapchat Reddit आपकी राय
  • इंटरनेट के चक्‍कर में धरती से खत्‍म हो सकता है जीवन! Ozone layer से जुड़ा है मामला, जानें
    1/5

    इंटरनेट के चक्‍कर में धरती से खत्‍म हो सकता है जीवन! Ozone layer से जुड़ा है मामला, जानें

    ओजोन लेयर (ozone layer) हमारी पृथ्‍वी को सूर्य से आने वाले खतरनाक विकिरण (radiation) से बचाती है। ओजोन लेयर ना रहे, तो धरती पर जीवन असंभव हो जाएगा। ओजोन लेयर को हो रहे नुकसान को कम करने के लिए पूरी दुनिया कोशिश कर रही है, लेकिन एक बड़ी चुनौती पेश कर रहे हैं निचली कक्षा में लॉन्‍च किए जा रहे छोटे सैटेलाइट्स। ये सैटेलाइट्स एलन मस्‍क की कंपनी स्‍पेसएक्‍स, वनवेब और एमेजॉन आदि कंपनियों की ओर से अंतरिक्ष में भेजे जा रहे हैं। वायुमंडल पर नजर रखने वाले वैज्ञानिक चिंता में हैं। उनका मानना है कि छोटे सैटेलाइट्स हमारी ओजोन लेयर को नुकसान पहुंचा सकते हैं। कैसे? आइए जानते हैं।
  • क्‍या होती है ओजोन लेयर
    2/5

    क्‍या होती है ओजोन लेयर

    ओजोन परत पृथ्वी के वायुमंडल की एक लेयर है, जहां ओजोन गैस की सघनता ज्‍यादा होती है। ओजोन लेयर के कारण ही धरती पर जीवन संभव है, क्‍योंकि यह सूर्य ये आने वाली पराबैंगनी किरणों (ultraviolet rays) को 99 फीसदी तक सोख लेती है। ये किरणें जीवन के लिए बहुत हानिकारक हैं। हालांकि तमाम तरह के प्रदूषणों के कारण ओजोन लेयर पतली हो रही है। कई जगह इसमें छेद भी हुए हैं।
  • क्‍यों लॉन्‍च किए जा रहे LEO सैटेलाइट्स
    3/5

    क्‍यों लॉन्‍च किए जा रहे LEO सैटेलाइट्स

    स्‍पेसएक्‍स, वनवेब और एमेजॉन आदि के द्वारा अंतरिक्ष में भेजे जा रहे सैटेलाइट्स वैज्ञानिकों की चिंता बढ़ा रहे हैं। ये सैटेलाइट लॉन्‍च किए जा रहे हैं, ताकि धरती के कोने-कोने में इंटरनेट की सुविधा पहुंचाई जा सके। हालांकि वैज्ञानिकों को लगता है कि इसकी बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है। लो-अर्थ-ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट्स की लाइफ करीब 5 साल होती है। उसके बाद इनका क्‍या होगा, कोई इस बारे में निश्चित नहीं है। अनुमान है कि इन सैटेलाइट्स के टूटकर बिखरने से तमाम मेटल और केमिकल वायुमंडल में फैलेंगे और ओजोन को नुकसान पहुंचाएंगे।
  • सरकारी रिपोर्ट में उठाए गए सवाल
    4/5

    सरकारी रिपोर्ट में उठाए गए सवाल

    यूएस गवर्नमेंट अकाउंटिबिलिटी ऑफ‍िस की ओर से पब्लिश की गई एक रिपोर्ट में कहा गया है कि अंतरिक्ष में करीब 5500 उपग्रह तैनात हैं। पूछा गया है कि इनकी पर्यावरणीय जांच क्‍यों नहीं की जा रही। अमेरिका के अलावा दुनियाभर के देश लो-अर्थ-ऑर्बिट में सैटेलाइट्स लॉन्‍च कर रहे हैं। जानकारी के अनुसार, साल 2021 में दुनियाभर में जितनी ऐप्लिकेशंस दी गई हैं, वो सभी मंजूर कर ली गईं तो लो-अर्थ-ऑर्बिट में सैटेलाइट्स की संख्‍या 10 लाख तक पहुंच सकती है।
  • इसलिए 'खतरनाक' हैं LEO सैटेलाइट्स
    5/5

    इसलिए 'खतरनाक' हैं LEO सैटेलाइट्स

    द वॉशिंगटन पोस्‍ट ने भी अपनी एक रिपोर्ट में इस पर प्रकाश डाला है। लिखा है कि ज्‍यादातर लो-अर्थ-ऑर्बिट सैटेलाइट्स जिन रॉकेट्स पर उड़ान भरते हैं, उनमें ईंधन के तौर पर मिट्टी का तेल इस्‍तेमाल होता है। वहीं सैटेलाइट्स का निर्माण एल्‍युमीनियम से होता है और उनमें टाइटेनियम, कैडमियम, लिथियम, निकल और कोबाल्ट समेत कई इलेक्‍ट्रॉनिक्‍स पुर्जे व बैटरी इस्‍तेमाल होती है। ये सभी चीजें ओजोन लेयर को प्रभावित कर सकती हैं। तस्‍वीरे, Unsplash से।
Comments

विज्ञापन

Follow Us

विज्ञापन

© Copyright Red Pixels Ventures Limited 2024. All rights reserved.
ट्रेंडिंग प्रॉडक्ट्स »
लेटेस्ट टेक ख़बरें »