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अंतरिक्ष में उड़ेंगे ‘हवाई जहाज'! 2 घंटे में पूरा होगा लंदन से सिडनी का 23 घंटों का सफर

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  • अंतरिक्ष में उड़ेंगे ‘हवाई जहाज'! 2 घंटे में पूरा होगा लंदन से सिडनी का 23 घंटों का सफर
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    अंतरिक्ष में उड़ेंगे ‘हवाई जहाज'! 2 घंटे में पूरा होगा लंदन से सिडनी का 23 घंटों का सफर

    लंबी दूरी की यात्राओं के लिए दुनियाभर में विमान सेवाओं का इस्‍तेमाल प्रमुख रूप से किया जाता है। अबतक आप और हम यही पढ़ते और सुनते आए हैं कि हवाई जहाज आसमान में उड़ता है। भविष्‍य में यह कथन बदल सकता है, क्‍योंकि हवाई सफर अंतरिक्ष से होते हुए पूरा हो सकता है। ब्रिटेन की सिविल एविएशन अथॉरिटी का कहना है कि सब-ऑर्बिटल स्‍पेस फ्लाइट्स यात्रा का ‘भविष्‍य' हैं। अगर ऐसा मुमकिन होता है तो लंदन से सिडनी का 16 हजार 986 किलोमीटर का सफर सिर्फ 2 घंटे में पूरा हो जाएगा, जिसमें अभी लगभग 23 घंटे लगते हैं।
  • अगले दशक तक तैयार हो जाएंगी फ्लाइट्स
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    अगले दशक तक तैयार हो जाएंगी फ्लाइट्स

    विशेषज्ञों का कहना है कि अंतरिक्ष से होकर गुजरने वाली विमान सेवाएं अगले दशक तक तैयार हो जाएंगी, लेकिन इन फ्लाइट्स में सफर करने वाले लोगों के शरीर पर उड़ान के क्‍या प्रभाव होंगे, इसकी स्‍टडी की जा रही है। द टाइम्‍स से बातचीत में ब्रिटिश सिविल एविएशन अथॉरिटी (CAA) के मेड‍िकल प्रमुख डॉ रयान एंडर्टन ने कहा कि यह कोई साइंस फ‍िक्‍शन नहीं है। निश्चित रूप से 10 साल से भी कम समय में ऐसा होगा।
  • करना होगा जीरो ग्रैविटी का सामना
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    करना होगा जीरो ग्रैविटी का सामना

    यात्री जब अंतरिक्ष से होकर गुजरेंगे तो उन्‍हें जीरो ग्रैविटी का सामना भी करना होगा। इसके अलावा, टेकऑफ और लैंडिंग के दौरान भी यात्रियों को जी-फोर्स (ग्रैविटेशनल फोर्स) से जूझना होगा। CAA ने इसे लेकर एक स्‍टडी की है, जिसके निष्‍कर्ष एयरोस्पेस मेडिसिन एंड ह्यूमन परफॉर्मेंस जर्नल में पब्लिश हुए हैं।
  • नहीं हटा सकेंगे सीट-बेल्‍ट
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    नहीं हटा सकेंगे सीट-बेल्‍ट

    हवाई सफर के दौरान यात्री टेकऑफ और लैंडिंग के बीच अपनी सीट-बेल्‍ट हटा सकते हैं, लेकिन अंतरिक्ष से गुजरने वाली उड़ानों में ऐसा नहीं हो सकेगा। अंतरिक्ष में जीरो-ग्रैविटी में ट्रैवल करते हुए यात्रियों को सीट बेल्‍ट बांधकर रखनी होगी। इसके अलावा यह भी हो सकता है कि टेकऑफ के दौरान यात्रियों को अपनी सीट पीछे की ओर झुकानी पड़े, जबकि लैंडिंग के दौरान उन्‍हें नीचे की ओर झुकना पड़े।
  • क्‍या होती हैं सबऑर्बिटल फ्लाइट्स
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    क्‍या होती हैं सबऑर्बिटल फ्लाइट्स

    जिन सबऑर्बिटल फ्लाइट्स को अगले दशक तक तैयार करने की बात कही जा रही है, उनका मतलब होता है कि फ्लाइट अंतरिक्ष में प्रवेश करती है। हालांकि उनमें पर्याप्‍त वेग (velocity) की कमी होती है, जिस कारण वह वापस पृथ्‍वी पर आ जाती हैं। इसके उलट, ऑर्बिटल फ्लाइट्स में एक ताकतवर प्रक्षेपवक्र (trajectory) होता है, जो उन्‍हें अंतरिक्ष में टिके रहने के काबिल बनाता है। स्‍पेस स्‍टेशन और सैटेलाइट लॉन्‍च से जुडी फ्लाइट्स ऑर्बिटल फ्लाइट्स होती हैं।
  • कितना खर्चीला होगा सफर
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    कितना खर्चीला होगा सफर

    वर्जिन गैलेक्टिक जैसी कंपनियों ने सबऑर्बिटल उड़ानें ऑफर की हैं, जिनमें एक सीट पर करोड़ों रुपये खर्च आया था। विशेषज्ञों का मानना है कि जब ये फ्लाइट्स दुनियाभर में इस्‍तेमाल होने लगेंगी तो खर्च कम हो जाएगा। हो सकता है कि एक से दूसरे देश की यात्रा करने के लिए यह एक बेहतर ऑप्‍शन के रूप में उभरे।
  • कैसे उड़ेंगी अंतरिक्ष से जाने वाली फ्लाइट्स
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    कैसे उड़ेंगी अंतरिक्ष से जाने वाली फ्लाइट्स

    रिपोर्ट के अनुसार, एक कमर्शल सबऑर्बिटल उड़ान के लिए किसी डेडिकेटेड लॉन्‍च साइट की जरूरत नहीं होगी। इन्‍हें मौजूदा हवाई अड्डों से ही उड़ाया जा सकेगा। यात्रियों को स्‍पेसक्राफ्ट जैसे वीकल पर उड़ाया जाएगा। अमेरिकी कंपनी सिएरा स्पेस (Sierra Space) ऐसे वीकल डेवलप भी कर रही है। इसे ड्रीम चेजर कहा जाता है, जिसे कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स शो में दिखाया जा चुका है। इसकी कैपिस‍िटी 7 यात्रियों की है, लेकिन व्‍यवसायिक इस्‍तेमाल बढ़ने पर ज्‍यादा या‍त्री क्षमता वाले वीकल डेवलप हो सकते हैं। सभी तस्‍वीरें सांकेतिक (Pixabay) से।
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