अगर आपका बच्चा सेल्फी के प्रति दीवाना है तो यह आपके लिए अच्छी खबर नहीं है। विशेषज्ञों का मानना है कि स्मार्टफोन और सेल्फी स्टिक आपके बच्चे के लिए सुविधा नहीं, बल्कि आत्महंता साबित हो रहे हैं, क्योंकि सेल्फी का क्रेज नई पीढ़ी को अपने मौजूदा समय से काट देता है।
हिंदी फिल्म उद्योग के महानायक अमिताभ बच्चन ने हाल ही में कहा है कि वह अपने एक मित्र की अंतिम यात्रा में शिरकत करने गए थे और वहां भी उनके साथ सेल्फी लेने वालों में मौके के प्रति असंवेदनशीलता से उन्हें गहरा धक्का लगा।
उन्होंने ट्वीट किया था, "यह बेहद दुखद है, जाने वाले के लिए उनमें कोई दुख नहीं है और न ही इस तरह के मौके के प्रति उनमें संवेदनशीलता।"
मुंबई के नानावती सुपर स्पेशलिटी अस्पताल की मनोचिकित्सक माधुरी सिह ने कहा, "अगर बिग बी इतने हैरान हैं तो वह अलग नहीं हैं। हाल ही में मैंने भी एक किशोर को देखा जिसने वेंटिलेटर पर पड़ी अपने दोस्त की मां के साथ सेल्फी ले ली और उसे फेसबुक पर साझा किया। यह सच में काफी दुखदायी है। सेल्फी का क्रेज भारतीय किशोरों में संवेदनशीलता को खत्म कर रहा है।"
दिल्ली के बीएलके सुपर स्पेशलिटी अस्पताल में वरिष्ठ मनोचिकित्सक एस. सुदर्शनन का कहना है कि शोकाकुल माहौल में सेल्फी लेना निश्चित रूप से एक असभ्य व्यवहार है और इसे हतोत्साहित किए जाने की जरूरत है।
मानव व्यवहार के विशेषज्ञ सेल्फी को तीन वर्गों में रखते हैं। पहला वह जो दोस्तों के साथ ली जाती है, दूसरी वह जो किसी समारोह के दौरान ली जाती है और तीसरी वह जिसका ध्यान भौतिक उपस्थिति पर होता है।
फोर्टिस अस्पताल के निदेशक समीर पारेख ने कहा, "सोशल मीडिया पर अत्यधिक निर्भरता और इन सेल्फियों को साझा करते रहना यह दर्शाता है कि यह आदत किशोरों के मनोविज्ञान और सामाजिक भलाई के लिए हानिकारक हो सकता है।"
किशोरों के लिए सेल्फी के इस्तेमाल पर रोक या प्रतिबंध लगाने से समस्या हल नहीं होगी। इसके लिए जरूरी है कि अभिभावक और अध्यापक दोनों ही अपने स्तर पर युवाओं से सेल्फी की संस्कृति और सामाजिक शिक्षा से जुड़े विभिन्न कारकों पर बात करें।
सुदर्शनन ने कहा कि सेल्फी को केवल एक मजेदार गतिविधि के रूप में ही लिया जाना चाहिए।
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