ई-कॉमर्स की दुनिया में क्षेत्रीय भाषाओं की दस्तक

ऑनलाइन की दुनिया में क्षेत्रीय भाषाओं के कंटेंट का बोलबाला नहीं है। वैसे कुछ मीडिया कंपनियों ने इस क्षेत्र में निवेश करना शुरू कर दिया है और अपनी पैठ बनाने के लिए पुरजोर कोशिश भी कर रहे हैं।

ई-कॉमर्स की दुनिया में क्षेत्रीय भाषाओं की दस्तक
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ऑनलाइन की दुनिया में क्षेत्रीय भाषाओं के कंटेंट का बोलबाला नहीं है। वैसे कुछ मीडिया कंपनियों ने इस क्षेत्र में निवेश करना शुरू कर दिया है और अपनी पैठ बनाने के लिए पुरजोर कोशिश भी कर रहे हैं। वैसे देशी भाषा मे ऑनलाइन वीडियो कंटेंट काफी पॉपुलर हैं, शायद यही वजह है कि सोशल मीडिया वेबसाइट फेसबुक ने हिंदी को सपोर्ट देना भी शुरू कर दिया है।

हालांकि, इस रेस में ई कॉमर्स कंपनियां बहुत पीछे हैं, चुनिंदा कंपनियां ही आपको आपकी भाषा में शॉपिंग करने की आजादी देती हैं। OLX और Quikr, दोनों कंपनियों की हिंदी वेबसाइट है। वैसे Quikr पर सात भारतीय भाषाओं का सपोर्ट मिलता है। पर इन साइट पर क्षेत्रीय भाषा में ट्रांजेक्शन्स नहीं कर सकते और आइटम की लिस्टिंग भी क्षेत्रीय भाषा में नहीं है।  

वैसे पिछले साल कुछ मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया था कि Flipkart, Snapdeal और Jabong जल्द ही क्षेत्रीय भाषाओं में साइट लॉन्च करेंगे। पर आज की तारीख में हकीकत यही है कि इस दिशा में सिर्फ Snapdeal सफल रहा।

पिछले साल नवंबर महीने में MakeMyTrip ने भी अपने कस्टमर्स के लिए हिंदी वेबसाइट की शुरुआत की थी। आज की तारीख में कंपनी कई मुश्किलों के बावजूद हिंदी के अलावा अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में सपोर्ट मुहैया कराने की स्थिति में है।

MakeMyTrip के मोबाइल प्रोडक्ट के हेड प्रणव भसीन ने बताया कि क्षेत्रीय भाषाओं में वेबसाइट, कंपनी का एक रणनीतिक कदम है। उन्होंने कहा, ''हिंदी में फ्लाइट बुकिंग तो बस एक शुरुआत थी। हम आने वाले दिनों में कई भाषाओं में रेलवे बुकिंग की शुरुआत करने वाले हैं। जिसमें हिंदी, तमिल, तेलुगू, गुजराती और मलयालम शामिल हैं।''



हिंदी साइट लॉन्च होने के करीब 6 महीने बाद कंपनी का कहना है कि यह प्रोजेक्ट इतना भी आसान नहीं रहा। भसीन ने कहा, ''जब प्रोजेक्ट की शुरुआत हुई तो कंसेप्ट बहुत ही आसान लगा। हमारे पास सारी टेक्नोलॉजी उपलब्ध है। बस हमें टैक्स्ट बदल देने की जरूरत है। लेकिन हमें बाद में एहसास हुआ कि सही अनुवाद करना बेहद ही मुश्किल है। और यह मार्केट भी बिल्कुल अलग है और कस्टमर्स भी।'' भसीन के मुताबिक पैसे का भुगतान कभी-कभार समस्या का विषय रहा है। इससे निजात पाने के लिए MakeMyTrip रेलवे टिकट के लिए कैश ऑन डिलिवरी के नफे-नुकसान का अध्ययन कर रही है।

Snapdeal को हिंदी वेबसाइट लॉन्च किए करीब एक साल का वक्त बीत गया है। कंपनी का दावा है कि उन्हें कस्टमर्स से पॉजिटिव फीडबैक मिले हैं। कंपनी के सीनियर वाइस प्रेसिडेंट (प्रोडक्ट डेवलपमेंट) अमित खन्ना का मानना है कि कस्टमर्स अंग्रेजी की तुलना में अपनी क्षेत्रीय भाषा को ज्यादा तरजीह देते हैं।



उन्होंने कहा, ''भारत के परिदृश्य में लोग क्षेत्रीय भाषा में पढ़ना पसंद करते हैं।'' वैसे उन्होंने यह अहम जानकारी भी दी कि हिंदी में काम शुरू करने के बाद कंपनी से नए कस्टमर्स नहीं जुड़े हैं बल्कि वह पुरानों को ही बेहतर सुविधा मुहैया करा रही है।

आपको बता दें कि जहां तक पैसे के भुगतान का सवाल है तो बैंक के पेज अंग्रेजी में होते हैं। इस पर अमित खन्ना का कहना है कि यह कोई चिंता का कारण नहीं है, इन पेजों का फॉर्मेट बेहद ही स्टेंडर्ड है और ज्यादातर कस्टमर्स इसके बारे में पहले से ही वाकिफ हैं। आपको थोड़ी बहुत अंग्रेजी समझ में आती है तो आप इस पेज पर आसानी से काम कर सकते हैं।

ई-कॉमर्स को रियल टाइम अनुवाद की जरूरत
हिंदी कंटेंट के लिए ई कॉमर्स कंपनियां थर्ड पार्टी पर निर्भर करती हैं। MakeMyTrip जैसी ट्रेवल साइट को इनफॉर्मेशन के लिए अपने पार्टनर पर ही निर्भर होना पड़ता है। इसलिए कई बार ऐसी स्थिति भी पैदा हो जाती है जब कंपनी को हिंदी कंटेंट नहीं मिलते। मीडिया कंपनियां तो अपनी जरूरतों के हिसाब से कंटेंट का अनुवाद करवा लेती हैं, लेकिन ई कॉमर्स कंपनी की मुख्य जरूरत है लाइव ट्रांसलेशन।

Snapdeal ने बताया कि शुरुआती दौर में ट्रांसलेशन के स्टेंडर्ड सोल्यूशन बेहद ही कम थे। हालांकि जरूरतों के हिसाब से कंपनी ने टेक्नोलॉजी को डेवलप कर लिया।



इस समस्या से MakeMyTrip को भी जूझना पड़ा। नतीजतन कंपनी ने अपनी ही ट्रांसलेशन टेक्नोलॉजी डेवलप कर ली। यूजर्स के फीडबैक और बिहेवियर के जरिए इस टेक्नोलॉजी में लगातार सुधार किया जा रहा है। इसके अलावा सपाट अनुवाद भी कस्टमर्स के हित में नहीं था। इसलिए कंपनी ने बोलचाल की भाषा और हिंग्लिश के शब्दों का ज्यादा तरजीह दी।

कहीं जल्दबाजी तो नहीं हो गई?
वैसे जानकारों का मानना है कि इतने छोटे से कस्टमर बेस के लिए इतना बड़ा निवेश, समझदारी का सौदा नहीं लगता। वो भी यह जानते हुए कि आने वाले दिनों में भी स्थिति कुछ ऐसी ही रहने वाली है।

अमित खन्ना ने बताया, ''आने वाले दिनों में भी भारतीय भाषाओं का डिमांड अंग्रेजी के बराबर नहीं पहुंचने वाला।'' पर उन्हें नहीं लगता कि Snapdeal ने वक्त से पहले हिंदी के क्षेत्र में निवेश नहीं किया। उनके अनुसार मार्केट में कंटेंट काफी दिनों से उपलब्ध था और कंपनी इस दिशा में निवेश करके इसके परिणाम देखना चाहती थी।

MakeMyTrip के प्रणव भसीन भी कुछ ऐसा ही सोचते हैं। उनका मानना है कि इंटरनेट पर क्षेत्रीय भाषाओं के बोलबाले में अभी बहुत समय बाकी है। अभी टियर 2 और टियर 3 शहरों के कस्टमर्स में हिंदी के प्रति अच्छा रुझान देखने को मिल रहा है। और सबसे अहम बात यह है कि कंपनी ने इस प्रोडक्ट की मार्केटिंग में भी कोई निवेश नहीं किया है। उन्हें उम्मीद है कि 4G नेटवर्क के आते ही इन शहरों से कंपनी को और ज्यादा कस्टमर्स मिलेंगे।
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