अब तक आपने AADHAAR, PAN और ड्राइविंग लाइसेंस जैसे डॉक्युमेंट्स के जरिए लोगों की पहचान होते देखी होगी। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि घरों की कोई यूनिक डिजिटल पहचान क्यों नहीं होती? अब सरकार इस तरफ ही एक बड़ा कदम उठाने जा रही है। आने वाले वक्त में आपके घर का भी एक यूनिक डिजिटल आईडी हो सकता है, ठीक वैसे ही जैसे आपका आधार नंबर होता है।
रिपोर्ट्स के
मुताबिक, यह नई पहचान ‘डिजिटल एड्रेस आईडी' (Digital Address ID) के नाम से लाई जा सकती है, जो भारत के डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर (DPI) का हिस्सा बनेगी। यह पहल UPI और आधार जैसी सफल तकनीकों के बाद सरकार की अगली बड़ी डिजिटल स्ट्रैटेजी का हिस्सा है। आइए जानते हैं कि ये सिस्टम क्या है, कैसे काम करेगा और क्यों इसकी जरूरत महसूस हुई।
यह ‘डिजिटल एड्रेस आईडी' है क्या?
सरल शब्दों में कहें तो यह एक यूनिक कोड या डिजिटल पहचान होगी जो हर घर, दुकान, ऑफिस या किसी भी फिजिकल लोकेशन को दी जाएगी। जैसे आपके मोबाइल नंबर से आप पहचाने जाते हैं, वैसे ही आपके घर को एक डिजिटल एड्रेस कोड से पहचाना जाएगा। इस कोड से उस लोकेशन को कहीं से भी डिजिटल तरीके से ट्रैक या वैरिफाई किया जा सकेगा।
कैसे काम करेगा ये सिस्टम?
इस डिजिटल एड्रेस सिस्टम में हर लोकेशन को एक यूनिक आईडी दी जाएगी जो जियो-लोकेशन (जैसे Latitude-Longitude), मैपिंग डेटा और एड्रेस की जानकारी पर आधारित होगी।
इसमें:
- आपका फिजिकल एड्रेस डिजिटली मैप किया जाएगा
- उस पर एक यूनिक कोड जेनरेट होगा
- सरकारी पोर्टल्स या UPI जैसे इकोसिस्टम में उस कोड को एड्रेस के रूप में इस्तेमाल किया जा सकेगा
- जरूरी हो तो QR कोड के रूप में भी यूज किया जा सकेगा
सरकार इसे प्लान क्यों कर रही है?
डिलीवरी और ई-कॉमर्स में सुधार के लिए, उदाहरण के लिए सटीक एड्रेस से लोकेशन-बेस्ड सर्विसेज जैसे Zomato, Amazon, Swiggy आदि के लिए डिलीवरी आसान और तेज हो जाएगी। सरकारी स्कीम्स का सही टार्गेटिंग, यानी डिजिटल एड्रेस से यह ट्रैक किया जा सकेगा कि किस घर को किस स्कीम का लाभ मिला या नहीं। आपातकालीन सेवाओं के लिए मददगार होगा, जैसे कि फायर ब्रिगेड, एंबुलेंस और पुलिस को घर की सटीक लोकेशन तक पहुंचने में आसानी होगी। फर्जी एड्रेस और फ्रॉड की रोकथाम भी होगी, जैसे कि डिजिटल वैरिफिकेशन से जाली पते या गलत एड्रेस देकर धोखाधड़ी के मामले घट सकते हैं।
फिलहाल क्या स्टेटस है?
यह प्रोजेक्ट शुरुआती स्टेज में है। नीति आयोग और डिजिटल इंडिया मिशन से जुड़े अधिकारी इस पर विचार कर रहे हैं। अगर सब कुछ प्लान के मुताबिक चला, तो आने वाले सालों में देशभर में इसका रोलआउट शुरू हो सकता है।