पृथ्‍वी से 1.5 लाख किलोमीटर दूर से आई चिड़‍ियों के ‘चहचहाने’ जैसी आवाज! जानें पूरा मामला

वैज्ञानिक वर्षों से ऐसी चहकती (chirping) तरंगों के बारे में जानते हैं, जो खतरनाक रेडिएशन से जुड़ी हैं। ये तरंगें इंसानों और सैटेलाइट्स दोनों को प्रभावित कर सकती हैं। अब खगोलविदों की एक इंटरनेशनल टीम ने अंतरिक्ष के एक नए क्षेत्र में इन तरंगों का पता लगाया है।

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Written by प्रेम त्रिपाठी, अपडेटेड: 29 जनवरी 2025 13:49 IST
ख़ास बातें
  • वैज्ञानिकों ने पृथ्‍वी से बाहर 'चहकती' तरंगों का नया सोर्स खोज
  • पहले 51 हजार किलोमीटर दूर खोजी गई थीं
  • अब डेढ़ लाख किलोमीटर दूर भी हुईं स्‍पॉट

Photo Credit: nature.com

वैज्ञानिक वर्षों से ऐसी चहकती (chirping) तरंगों के बारे में जानते हैं, जो खतरनाक रेडिएशन से जुड़ी हैं। ये तरंगें इंसानों और सैटेलाइट्स दोनों को प्रभावित कर सकती हैं। अब खगोलविदों की एक इंटरनेशनल टीम ने अंतरिक्ष के एक नए क्षेत्र में इन तरंगों का पता लगाया है। इससे सवाल पैदा हुआ है कि आखिर इन तरंगों की उत्‍पत्‍त‍ि कहां से होती है। ये तरंगें अंतरिक्ष में मौजूद सबसे पावरफुल नेचुरल इलेक्‍ट्रोमैग्‍नेटिक रेडिएशन में से एक हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार, इन तरंगों से निकलने वाली साउंड वेव्‍स में पक्षियों की तरह चहचहाहट होती है। 

वैज्ञानिकों का कहना है कि ये तरंगें हमारी पृथ्‍वी के काफी ऊपर से गुजरती हैं। नए ऑब्‍जर्वेशन से पहले इन तरंगों को पृथ्‍वी से सिर्फ 51 हजार किलोमीटर दूर खोजा गया था। वह एक ऐसी जगह है जहां पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र सक्र‍िय है। अबतक वैज्ञानिक यही मानते आ रहे थे कि इस इलाके से ही तरंगें पैदा होती हैं। 

नई रिसर्च को जरनल नेचर मैग्‍जीन में पब्लिश किया गया है। इसमें जिस क्षेत्र से तरंगों के निकलने की बात कही गई है, वह पृथ्‍वी से करीब 1 लाख 65 हजार किलोमीटर दूर है। इस दूरी पर पृथ्वी का चुंबकीय क्षेत्र कहीं अधिक विकृत है। इस खोज का मतलब यह है कि इन तरंगों की उत्‍पत्‍त‍ि, पृथ्‍वी के एकदम नजदीक से तो नहीं है। 

यह खोज वैज्ञानिकों के लिए नए रास्‍ते खोलती है। वह इन तरंगों को फ‍िर से समझना चाहेंगे। उनके स्रोत का पता नए सिरे से लगाया जाएगा और देखा जाएगा कि इस सबका हमारे ग्रह पर क्‍या असर होता है। पृथ्‍वी की तरह अन्‍य ग्रहों पर भी ऐसी तरंगें मौजूद हैं। इनमें मंगल, बृहस्‍पति, शनि ग्रह आदि शामिल हैं। नई खोज से वैज्ञानिकों को यह समझने में भी मदद मिलेगी कि तमाम ग्रहों का मैग्‍नेटिक फील्‍ड किस तरह से आकार लेता है।
 
 

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