थ्वेट्स ग्लेशियर (Thwaites glacier) जिसे डूम्ज़्डे ग्लेशियर के नाम से भी जाना जाता है, अंटार्कटिका (Antarctica) के प्रमुख ग्लेशियरों में से एक है। जब दुनियाभर में जलवायु परिवर्तन का असर दिखाई दे रहा है, तो इस ग्लेशियर की स्थिति क्या है? वैज्ञानिक इस पर रिसर्च कर रहे हैं और जो जानकारी उन्हें मिली है, उसने चिंता बढ़ा दी है। थ्वेट्स ग्लेशियर के आकार को आप ऐसे समझ सकते हैं कि यह अमेरिका के फ्लोरिडा राज्य के बराबर है। अनुमान है कि इसके पिघलने से समुद्र का जलस्तर दो फीट तक बढ़ जाएगा जो तबाही लेकर आएगा। वैज्ञानिक यह जानते हैं कि थ्वेट्स ग्लेशियर भी पिघल रहा है और हर साल करीब 50 अरब टन बर्फ को पानी में बदल रहा है।
ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण का कहना है कि यह ग्लेशियर दुनिया के समुद्र में होने वाली बढ़ोतरी के 4 फीसदी के लिए जिम्मेदार है। कई और स्टडीज में भी नई जानकारियां सामने आई हैं।
फर्स्टपोस्ट के अनुसार, CNN की रिपोर्ट में नेचर जियोसाइंस जर्नल में सोमवार को पब्लिश हुई एक स्टडी का हवाला दिया गया है। लिखा गया है कि थ्वेट्स ग्लेशियर का बेस खत्म हो रहा है। जानकारी के अनुसार, पहली बार रिसर्चर्स ने इस ग्लेशियर के नीचे समुद्र तल का नक्शा बनाने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल किया। वैज्ञानिकों ने जो खोज की, उसने उन्हें स्तब्ध कर दिया। इस ग्लेशियर का बेस पिछली दो शताब्दियों में समुद्र तल से अलग हो गया और हर साल 2.1 किलोमीटर की दर से पीछे हट रहा है।
अनुमान है कि यह ग्लेशियर आने वाले समय में अपनी समुद्री रिज से तेजी से पीछे हट सकता है, जो अभी तक इसे कंट्रोल कर रही है। स्टडीज से पता चलता है कि इसकी बर्फ की शेल्फ साल 2031 की शुरुआत में समुद्र में गिर सकती है।
वैज्ञानिक लंबे वक्त से थ्वेट्स ग्लेशियर पर नजर रख रहे हैं। साल 1973 में पहली बार इसके टूटने के बारे में सोचा गया था।
साल 2020 में इसकी इमेजेस की स्टडी में पाया गया कि थ्वेट्स और उसके पड़ोसी पाइन आइलैंड ग्लेशियर पहले की तुलना में अधिक तेजी से टूट रहे थे।
वैज्ञानिक इसके पिघलने को अच्छा नहीं मानते। ब्रिटिश अंटार्कटिक सर्वेक्षण की स्टडी के सह-लेखकों में से एक रॉबर्ट लार्टर कहते हैं कि थ्वेट्स ग्लेशियर वास्तव में कमजोर हो रहा है। इसकी वजह से भविष्य में बड़े बदलाव देखने को मिल सकते हैं। वैज्ञानिक कहते हैं कि इस ग्लेशियर के साथ होने वाली घटना बड़े रिएक्शन की वजह बन सकती है।