ऑक्सीजन हमारे वायुमंडल में पाई जाने वाली जीवनदायी गैसों में से है। इसी गैस पर हमारी सांसें चलती हैं। आपने सुना होगा कि ऑक्सीजन पृथ्वी के वायुमंडल में पाई जाती है। लेकिन एक नई खोज आपको चौंका सकती है। क्या आप अंदाजा लगा सकते हैं कि समुद्र में हजारों फीट की गहराई में भी कोई ऐसी चीज मौजूद है जो ऑक्सीजन बना सकती है? और वह भी सूर्य की रोशनी की गैरमौजूदगी में! नई खोज ऐसा ही कुछ कहती है।
वैज्ञानिकों ने एक नई खोज पेश की है। खोज कहती है कि
समुद्र की गहराईयों में जहां कभी सूरज की रोशनी नहीं पहुंचती है, और जहां ढेलेदार धात्विक चट्टानें मौजूद हैं, वहां ऑक्सीजन पैदा की जा रही है। लेकिन कैसे? वैज्ञानिकों ने इसे डार्क ऑक्सीजन (Dark Oxygen) का नाम दिया है। कुछ वैज्ञानिक इस थ्योरी को मान रहे हैं जबकि कुछ वैज्ञानिक इसे चुनौती दे रहे हैं।
इस
स्टडी को पिछली जुलाई के जर्नल Nature Geoscience में प्रकाशित किया गया है। यह एक ऐसी खोज है जिसने पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति के बारे में लंबे समय से चली आ रही धारणाओं पर सवाल उठाया है और गहन वैज्ञानिक विवाद को जन्म दिया है। यह खोज सिर्फ वैज्ञानिकों के लिए ही नहीं बल्कि इसके निष्कर्ष उन खनन कम्पनियों के लिए भी महत्वपूर्ण थे जो इन बहुधात्विक पिंडों (polymetallic nodules) में छुपी बहुमूल्य धातुओं को निकालने के लिए उत्सुक थीं।
शोधकर्ताओं का कहना है कि आलू के आकार के ये पिंड समुद्री पानी को हाइड्रोजन और ऑक्सीजन में तोड़ने के लिए पर्याप्त इलेक्ट्रिक करंट पैदा कर सकते हैं। इस प्रक्रिया को इलेक्ट्रोलिसिस (electrolysis) के नाम से जाना जाता है। इस खोज से लंबे समय से चली आ रही धारणा पर संदेह पैदा हो गया है। अभी तक धारणा थी कि जीवन तब संभव हुआ जब लगभग 2.7 अरब वर्ष पहले जीवों ने प्रकाश संश्लेषण (photosynthesis) के माध्यम से ऑक्सीजन को पैदा करना शुरू किया, जिसके लिए सूर्य के प्रकाश की आवश्यकता होती है।
पर्यावरणविदों ने इसे देखकर कहा कि डार्क ऑक्सीजन की मौजूदगी से पता चलता है कि इतनी अत्यधिक गहराइयों में जीवन के बारे में हमें अभी कितनी कम जानकारी है। पर्यावरण संगठन Greenpeace ने कहा कि उन्होंने प्रशांत महासागर में गहरे समुद्र में खनन को रोकने के लिए लंबे समय से अभियान चलाया है, क्योंकि इससे गहरे समुद्र के नाजुक ईकोसिस्टम को नुकसान पहुंच सकता है। यह खोज क्लेरियन-क्लिपर्टन जोन में की गई। यह जोन मेक्सिको और हवाई के बीच प्रशांत महासागर का एक अंडरवाटर एरिया है, जिसमें खनन कंपनियों की रुचि बढ़ रही है।
यह समुद्र की सतह से 2.5 किलोमीटर नीचे मौजूद क्षेत्र है। यहां पर पॉलिमेटेलिक नोड्यूल हैं जिनमें मैंगनीज, निकल और कोबाल्ट, और ऐसी ही अन्य कई धातुएं हैं जो इलेक्ट्रिक कारों की बैटरियों में इस्तेमाल होती हैं। इसके अलावा ये अन्य लो-कार्बन तकनीकों में भी इस्तेमाल होती हैं। बहरहाल इस खोज पर वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं। साथ ही पर्यावरण से जुड़े संगठन चिंतित हैं कि समुद्र में खनन वहां के ईकोसिस्टम के लिए कितना नुकसानदेह हो सकता है।