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धरती के 160Km नीचे ‘पाताललोक' तक पहुंचे वैज्ञानिक, जानें क्‍या मिला

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  • धरती के 160Km नीचे ‘पाताललोक' तक पहुंचे वैज्ञानिक, जानें क्‍या मिला
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    धरती के 160Km नीचे ‘पाताललोक' तक पहुंचे वैज्ञानिक, जानें क्‍या मिला

    जमीन खोदने की बात आती है, तो इंसान की जरूरत उतने में जाकर खत्‍म हो जाती है, जितने में उसे पानी मिल जाए। बड़ी खदानों में भी खुदाई वहीं तक होती है, जहां तक जरूरी धातुएं मिलती हैं। लेकिन कभी आपने सोचा है कि धरती के ‘गर्भ' में क्‍या छुपा है। ऐसा लगता है कि वैज्ञानिकों ने इस बारे में जानने का मन बना लिया है। हाल में उन्‍हें एक अहम जानकारी मिली है। यह जानकारी धरती के 100 मील यानी करीब 160 किलोमीटर नीचे छुपी है। क्‍या वैज्ञानिकों ने ‘पाताललोक' का पता लगा लिया है? आइए जान लेते हैं।
  • धरती के नीचे बसी है अलग दुनिया?
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    धरती के नीचे बसी है अलग दुनिया?

    कहने वालों की कमी नहीं है कि धरती के नीचे एक अलग दुनिया बसती है, हालांकि विज्ञान इसे नहीं मानता। वह पृथ्‍वी को वैज्ञानिक नजर‍िए से देखता है, जिसमें धरती के नीचे अलग-अलग परतों के होने की बात कही जाती है।
  • तो क्‍या मिला है वैज्ञानिकों को?
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    तो क्‍या मिला है वैज्ञानिकों को?

    टेक्सास यूनिवर्सिटी के रिसर्चर्स ने धरती की सतह से 100 मील यानी करीब 160 किलोमीटर नीचे पृथ्वी की नई परत का पता लगाया है। इसे एस्थेनोस्फीयर (asthenosphere) कहा जाता है। धरती के इतने नीचे मिली परत पिघली हुई चट्टानों की है। दावा है कि यह चट्टानी इलाका हमारे ग्रह के कम से कम 44 फीसदी हिस्से को कवर करता है।
  • 1400 डिग्री सेल्सियस है तापमान
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    1400 डिग्री सेल्सियस है तापमान

    चट्टान की जिस परत को खोजा गया है, उसका तापमान 1426 डिग्री सेल्सियस से अधिक है। वैज्ञानिकों के निष्कर्ष नेचर जियोसाइंस पत्रिका में पब्लिश हुए हैं। इसमें कहा गया है कि जो परत खोजी गई है, वह पिघली हुई चट्टानों से युक्‍त चिपचिपा पदार्थ है।
  • इस रिसर्च की क्‍या है अहमियत
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    इस रिसर्च की क्‍या है अहमियत

    रिपोर्टों के अनुसार, टेक्सास यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिक जुनलिन हुआ ने पृथ्वी के नीचे मिली परत के बारे में कहा है कि यह खोज भ‍विष्‍य में होने वाली रिसर्च में कारगर साबित हो सकती है। पिघलती हुई चट्टानों के बारे में भी इस रिसर्च की मदद से और जानकारी जुटाई जा सकती है। पृथ्‍वी के भीतर चल क्‍या रहा है, यह जानने में रिसर्च कारगर साबित हो सकती है।
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