सूर्य कब ‘भड़कने' वाला है, वैज्ञानिकों को पहले ही चल जाएगा पता, जानें क्या हाथ लगा
इन दिनों आप सोलर फ्लेयर (Solar Flare) से जुड़ी खबरें पढ़ रहे होंगे। जब सूर्य की चुंबकीय ऊर्जा रिलीज होती है, तो उससे निकलने वाली रोशनी और पार्टिकल्स से सोलर फ्लेयर्स बनते हैं। हमारा सूर्य अपने 11 साल के चक्र से गुजर रहा है और बहुत अधिक एक्टिव फेज में है। इसके कारण सोलर फ्लेयर्स और कोरोनल मास इजेक्शन (CME) की घटनाएं बढ़ गई हैं। वैज्ञानिक कई वर्षों से सोलर फ्लेयर्स को स्टडी कर रहे हैं। वह कोशिश करते हैं यह बताने की कि सूर्य की सतह से कब और कहां विस्फोट होगा। अब कुछ ऐसे सुराग मिले हैं, जो वैज्ञानिकों को उनके काम में मदद कर सकते हैं।
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क्या होते हैं सोलर फ्लेयर्स
खबर पर आगे बढ़ें, उससे पहले सोलर फ्लेयर और CME को जान लेना चाहिए। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा (Nasa) के अनुसार, जब सूर्य की चुंबकीय ऊर्जा रिलीज होती है, तो उससे निकलने वाली रोशनी और पार्टिकल्स से सौर फ्लेयर्स बनते हैं। हमारे सौर मंडल में ये फ्लेयर्स अबतक के सबसे शक्तिशाली विस्फोट हैं, जिनमें अरबों हाइड्रोजन बमों की तुलना में ऊर्जा रिलीज होती है। इनमें मौजूद एनर्जेटिक पार्टिकल्स, प्रकाश की गति से अपना सफर तय करते हैं।
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क्या होते हैं कोरोनल मास इजेक्शन
नासा के मुताबिक, कोरोनल मास इजेक्शन या CME, सौर प्लाज्मा के बड़े बादल होते हैं। सौर विस्फोट के बाद ये बादल अंतरिक्ष में सूर्य के मैग्नेटिक फील्ड में फैल जाते हैं। अंतरिक्ष में घूमने की वजह से इनका विस्तार होता है और अक्सर यह कई लाख मील की दूरी तक पहुंच जाते हैं। जब इनकी दिशा की पृथ्वी की ओर होती है, तो यह जियो मैग्नेटिक यानी भू-चुंबकीय गड़बड़ी पैदा कर सकते हैं। इनकी वजह से सैटेलाइट्स में शॉर्ट सर्किट हो सकता है और पावर ग्रिड पर असर पड़ सकता है।
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छोटी फुलझड़ियां देंगी सुराग!
नॉर्थवेस्ट रिसर्च एसोसिएट्स (NWRA) के रिसर्चर्स ने सूर्य के वातावरण को समझा। उन्होंने नासा की सोलर डायनेमिक्स ऑब्जर्वेटरी (SDO) के डेटा को इस्तेमाल किया। वैज्ञानिकों ने पाया कि सूर्य के वो इलाके जहां से फ्लेयर निकले, वहां सूर्य के वातावरण यानी कोरोना ने छोटी-छोटी चमकें पैदा की थीं। नासा के मुताबिक, वह ‘बड़ी आतिशबाजी' से पहले की ‘फुलझड़ियां' थीं।
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हमें क्या फायदा होगा
इस खोज से वैज्ञानिक, सोलर फ्लेयर्स और कोरोनल मास इजेक्शन आदि से जुड़ी अपनी भविष्यवाणियां बेहतर कर पाएंगे। इस खोज के निष्कर्ष द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी पहले ही कह चुक है कि साल 2025 में हम सूर्य के 11 साल के सौर चक्र के पीक पर पहुंचेंगे, जिसे सोलर मैक्सिमम भी कहा जाता है। इस वजह से कोरोनल मास इजेक्शन (CME) और सोलर फ्लेयर्स की संभावना बहुत ज्यादा बढ़ जाएगी। उम्मीद है कि तब तक हमें इससे जुड़े अलर्ट और सटीकता के साथ मिलने लगेंगे। (तस्वीरें नासा से)
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