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दुनिया की सिर्फ 0.001% आबादी ले रही साफ हवा में सांस! जानें कौन से हैं वो इलाके

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  • दुनिया की सिर्फ 0.001% आबादी ले रही साफ हवा में सांस! जानें कौन से हैं वो इलाके
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    दुनिया की सिर्फ 0.001% आबादी ले रही साफ हवा में सांस! जानें कौन से हैं वो इलाके

    वायु प्रदूषण (Air Pollution) पूरी दुनिया के लिए चुनौती बना हुआ है। विकसित से लेकर विकासशील और गरीब देश जहरीली हवा से जूझ रहे हैं। इनमें भारत भी शामिल है, जहां साल के ज्‍यादातर दिनों में हवा सांस लेने के लायक नहीं रहती। अब एक हालिया स्‍टडी में जो बताया गया है, वह और भी ज्‍यादा चिंता बढ़ाने वाला है। लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ (Lancet Planetary Health) में सोमवार को पब्‍लिश हुई एक स्‍टडी में कहा गया है कि दुनिया में सिर्फ 0.001% आबादी ऐसी हवा में सांस लेती है, जो मानकों के अनुरूप है। ऐसे में यह जानना जरूरी हो जाता है कि वो कौन से इलाके हैं, जहां हवा अब भी सेहतकारी है।
  • 99.82% क्षेत्र में हवा ‘खराब'
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    99.82% क्षेत्र में हवा ‘खराब'

    इस स्‍टडी में कहा गया है कि वैश्विक भूमि (global land area) का लगभग 99.82% क्षेत्र पार्टिकुलेट मैटर 2.5 (PM2.5) के स्तर के संपर्क में है। पीएम 2.5 हवा में मौजूद धूल के वो कण होते हैं, जो सीधे हमारे शरीर में सांस के साथ प्रवेश कर जाते हैं। वैज्ञानिक पीएम 2.5 को कैंसर और ह्रदय रोगों की एक वजह भी मानते हैं। स्‍टडी कहती है दुनिया के 99.82% जमीनी इलाके में पीएम 2.5 का लेवल विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन यानी WHO द्वारा तय की गई सीमा से ऊपर है। यानी सिर्फ 0.001% आबादी ही साफ हवा में सांस लेती है।
  • इन देशों में हालात ज्‍यादा खराब
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    इन देशों में हालात ज्‍यादा खराब

    इस स्‍टडी को ऑस्‍ट्रेलिया और चीन के वैज्ञानिकों ने मिलकर किया। स्‍टडी में पाया गया कि साल 2019 में 70 फीसदी से ज्‍यादा दिनों तक पीएम 2.5 का लेवल मानकों से अधिक था। स्‍टडी कहती है कि दक्षिणी एशिया और पूर्वी एशिया के इलाकों में हवा की गुणवत्ता खासतौर पर चिंताजनक है। साल 2019 में इन क्षेत्रों में 90 फीसदी से ज्‍यादा दिनों तक हवा खराब रही। गौरतलब है कि भारत भी इसी क्षेत्र में आता है।
  • क्‍या बोले रिसर्चर्स
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    क्‍या बोले रिसर्चर्स

    मोनाश यूनिवर्सिटी में लीड रिसर्चर प्रोफेसर युमिंग गुओ के हवाले से जापान टाइम्‍स ने लिखा है कि हमारी स्‍टडी पीएम 2.5 के रोज नजर आने वाले जोखिम को लेकर वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं के मन को बदल सकती है। उन्‍होंने कहा कि अगर हम हर रोज स्वच्छ हवा को मुमकिन बना पाते हैं, तो यकीनन लंबे समय में वायु प्रदूषण से जुड़े जोखिम कम होंगे।
  • हर साल 67 लाख लोग गंवाते हैं जान
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    हर साल 67 लाख लोग गंवाते हैं जान

    रिपोर्ट में कहा गया है कि वायु प्रदूषण की वजह से हर साल 67 लाख लोगों की मौत हो जाती है। मौत की बड़ी वजह पीएम 2.5 बनते हैं। चिंता की बात है कि पीएम 2.5 को मापने वाले मॉनिटरिंग स्‍टेशनों की भी दुनिया में कमी है। गरीब देशों में लोग पीएम 2.5 से जुड़े जोखिमों के बारे में जानते तक नहीं हैं। कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां प्रदूषण का स्‍तर खतरनाक है, लेकिन उसकी मॉनिटरिंग नहीं की जा रही है। बहरहाल, इस स्‍टडी में दुनियाभर के 5 हजार से ज्‍यादा मॉनिटरिंग स्‍टेशनों से डेटा को जुटाया गया था।
  • कौन से क्षेत्र हैं फ‍िलहाल ‘सेफ'
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    कौन से क्षेत्र हैं फ‍िलहाल ‘सेफ'

    स्‍टडी में सामने आया है कि ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के लोगों को पीएम 2.5 का सबसे कम सामना करना पड़ा। हालांकि यह कुछ ही इलाकों तक सीमित है। ओशिनिया और दक्षिणी अमेरिका के कुछ इलाकों में भी पीएम 2.5 की मात्रा दुनिया के बाकी देशों से कम थी। स्‍टडी कहती है कि एशिया, उत्तरी और उप-सहारा अफ्रीका, ओशिनिया और लैटिन अमेरिका व कैरिबियन के ज्‍यादातर इलाकों में बीते 20 साल में PM2.5 की मात्रा बढ़ी है। कड़े नियमों के कारण यूरोप और उत्तरी अमेरिका में प्रदूषण के स्‍तर में कमी भी आई है। तस्‍वीरें, Unsplash से।
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