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हमारी सांसों में हर हफ्ते इतना माइक्रोप्‍लास्टिक पहुंच रहा जिससे बन जाएगा एक क्रेडिट कार्ड!

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    हमारी सांसों में हर हफ्ते इतना माइक्रोप्‍लास्टिक पहुंच रहा जिससे बन जाएगा एक क्रेडिट कार्ड!

    विज्ञान में हमने यही पढ़ा है कि इंसान सांस लेते समय ऑक्‍सीजन खींचता है और कार्बन डाई ऑक्‍साइड से भरपूर हवा को बाहर छोड़ता है। क्‍या हो अगर ऑक्‍सीजन के साथ हमारी सांसों में कुछ और भी शामिल हो जाए। एक नई स्‍टडी में कहा गया है कि हम हर हफ्ते इतने माइक्रोप्लास्टिक (Microplastic) पार्टिकल्‍स हमारी सांसों में खींच रहे हैं, जिससे एक क्रेडिट कार्ड बनाया जा सकता है। क्‍या होते हैं माइक्रोप्लास्टिक? कितनी अहम है यह स्‍टडी, आइए जानते हैं।

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    माइक्रोप्लास्टिक क्‍या होते हैं?

    माइक्रोप्लास्टिक, प्लास्टिक के ही पार्टिकल्‍स होते हैं। इनका व्यास 5 मिलीमीटर से भी कम होता है। हम रोजमर्रा की जिंदगी में जो भी प्‍लास्टिक इस्‍तेमाल करते हैं, आखिर में उसका ज्‍यादातर हिस्‍सा समुद्र में पहुंचता है। वहां पहुंचकर प्‍लास्टिक, माइक्रोप्लास्टिक में टूट जाता है। समुद्री हवाएं जब बादल बनकर धरती पर पहुंचती हैं, तो बारिश के साथ हमें वही माइक्रोप्लास्टिक लौटा जाती हैं, जिसे प्‍लास्टिक के रूप में हमने समुद्र में पहुंचाया है।

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    हमारी सांसों में पहुंच रहा माइक्रोप्‍लास्टिक

    स्‍टडी के निष्‍कर्ष जर्नल फ‍िजिक्‍स ऑफ फ्लुइड्स में पब्लिश हुए हैं। रिसर्च को यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्‍नॉलजी सिडनी के डेटा एक्‍सपर्ट, डॉ. मोहम्‍मद इस्‍लाम ने लीड किया। स्‍टडी कहती है कि इंसान हर घंटे 16.2 bits माइक्रोप्लास्टिक अपनी सांस में लेता है। प्‍लास्टिक के ये कण इंसान के रेस्पिरेटरी सिस्‍टम के लिए गंभीर खतरा पैदा कर सकते हैं।

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    कंप्‍यूटर मॉडल से मिली जानकारी

    रिसर्चर्स ने यह सिम्‍युलेट करने के लिए एक कंप्यूटर मॉडल बनाया है कि जब कोई सांस लेता है तो माइक्रोप्लास्टिक्स कैसे आगे बढ़ते हैं और इंसान के वायुमार्ग में पहुंच जाते हैं। रिसर्चर्स ने पाया है कि ये पॉल्‍यूटेंट्स जहरीले हैं और हमारी नाक गुहा या गले के पिछले हिस्‍से में इकट्ठा होकर वायुमार्ग के जरिए शरीर में पहुंच सकते हैं।

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    कैंसर जैसी बीमारियों की बन सकते हैं वजह

    माइक्रोप्लास्टिक हमारे शरीर के लिए घातक हो सकते हैं। इनके नुकसान की वजह से इंसान को कैंसर जैसी गंभीर बीमारी के साथ-साथ ह्रदय रोग और डिमेंशिया का खतरा हो सकता है। यह इंसान की प्रजनन क्षमता को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसा अंदेशा है कि माइक्रोप्‍लास्टिक की वजह से कम वजन के बच्‍चे पैदा हो रहे हैं।

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    क्‍या कहते हैं रिसर्चर

    इस शोध को लीड करने वाले डॉ मोहम्मद इस्लाम ने अपनी फाइंडिंग्‍स में लिखा है कि माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी हर जगह है। वह पानी में, हवा में, मिट्टी में मिल रहे हैं। प्‍लास्टिक के समुद्र में पहुंचने से दुनियाभर में माइक्रोप्लास्टिक का दायरा बढ़ रहा है। हवा में इनका घनत्‍व बहुत ज्‍यादा हो रहा है। यह हमारी सांस के लिए अच्‍छा नहीं है। तस्‍वीरें, Unsplash से।

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